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________________ सुचरित्रम् में कूट-कूटकर भरे जाते थे कि चरित्र जीवन की अमूल्य निधि है, उसकी सुरक्षा जी जान से करना है। चरित्र है तो जीवन है अन्यथा जीवन का मूल्य दो कौड़ी रह जाता है। उन्हें उदात्त विचारों वाली शीलमूर्ति वीरांगना सन्नारियों की घटनाएं अथवा कहानियाँ सुनाई जाती थी एवं चरित्र सुरक्षा के उनके संस्कारों को अत्यधिक सुदृढ़ बनाया जाता था। अत्यल्प ऐसी घटनाएँ होती हैं जिनकी कि भर्त्सना की जा सके। न उस समय गर्भपात के साधन थे और न ऐसे अवैध संबंध होते थे। न पिक्चर, रेस्टोरेंट्स, पब्स एवं क्लबों की संस्कृति थी कि जिनके माध्यम से चारित्रिक पतन के कारनामे घटित हों। __ आज चरित्र के संदर्भ में विचार करें तो ठीक इससे विपरीत स्थिति परिलक्षित होती है। युवा युवतियों को मुक्त आकाश में घमने की खली छट मिली हई है। सहशिक्षा.टी.वी.कल्चर एवं क्लब संस्कृति ने चारित्रिक पतन को पराकाष्ठा पर पहुंचा दिया है। सारे मानवीय मूल्य ही बदल गए हैं। विशेषता यह है कि इस पतन को विकास का जामा पहनाया जा रहा है। पुरानी उदात्त एवं चारित्रिक सुरक्षा की परम्पराओं का अनुसरण कराने वालों को पोंगा पंडित एवं दकियानुसी कहा जाता है। . कुल मिलाकर पानी इतना सिर से ऊपर निकल चुका है कि सुधार की अथवा अपने वैयक्तिक चरित्र को भी सुरक्षित रख पाना एक जटिलतम समस्या बन गया। युवतियों में हार्ड ड्रिंक्स पीने का ट्रेड इस सीमा तक बढ़ गया है कि अब उनका उस कल्चर से लौटना अत्यंत जटिल हो गया है। हाई प्रोफाइल एवं फैशनेबल बनकर उच्चतम वर्ग में अपना स्थान बनाने की एक घिनौनी प्रतिस्पर्धा प्रारंभ हो गई है। कहाँ जाकर थमेगी यह प्रतिस्पर्धा कुछ कहा नहीं जा सकता है। ___ मोबाइल की सुविधा ने तो कम उम्र किशोर-किशोरियों के लिए चरित्र पतन का मार्ग इस कदर अत्यंत सुगम बना दिया है कि नन्हीं उम्र की किशोरियाँ सैक्स को फैशन समझने लगी है और उन्हें अपने बड़े-बुजुर्गों से इसमें कोई संकोच शर्म का भाव ही नहीं रहा। ये नन्हीं किशोरियाँ हेण्ड ग्ल्ब्स एवं स्कार्फ पहनकर अपने माता-पिता ही नहीं पूरी जनता की आँखों में खुलेआम धूल झोंककर जीवन को पतन की खाई में गिराने की ओर बड़ी तेजी से बढ़ रही है। यह चारित्रिक पतन इस भयावह स्थिति तक पहुँच गया है कि क्लब एवं पब्स की संस्कृति में जीने में माँ-बाप भी अंधे होकर अपनी बेटियों को खुली छूट ही नहीं देते उन्हें प्रोत्साहित भी करते हैं। यह आग उच्च वर्ग से फिसलती हुई मध्यम वर्ग को भी लपेटे में ले चुकी है और सम्पूर्ण चरित्र प्रधान भारतीय संस्कृति को भस्मसात करने को तत्पर है। सर्वाधिक खेद का विषय तो यह है कि पूरी भारतीय संस्कृति की अस्मिता को भस्मपात कर देने वाले इस दावानल को सभी राजनेता, बुद्धिजीवी एवं धर्मनेता अपनी खुली आँखों से देख रहे हैं और समझ भी रहे हैं कि चारित्रिक पतन का यह दावानल इतना भयावह है कि एक दिन यह सभ्यतासंस्कृति और धर्म को ही नहीं पूरी मानव जाति को ही भस्मीभूत कर देगा किन्तु समाधान कहीं भी दिखाई नहीं दे रहा है। यह नग्न सत्य है कि प्राकृतिक आपदाएं या दूषित पर्यावरण जितना हानिकारक नहीं होता उतना
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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