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________________ अब तक के विकास का पोस्टमार्टम अर्थात् मानव जीवन के यथार्थ की खोज कगार तक पहुंच कर भी वापिस लौट आता है, वह जीवन की हारी हुई बाजी को भी जीत लेता है। यही चरित्र प्रकट हुआ जिनरक्ष का। दूसरी ओर जीवन की जीती हुई बाजी को भी एक क्षण की दर्बलता के कारण हार गया जिनपाल और अपने जीवन को खो बैठा-जीवन खोया ही नहीं, कष्टकारी यंत्रणाओं का शिकार भी बना।। ___ समझने की बात है कि यह लक्ष्मण रेखा कौनसी है? यह लक्ष्मण रेखा है चरित्र गठन की। चरित्र । का अर्थ है दृढ़ता, संकटों से जुझ कर भी अपने अस्तित्व को सुरक्षित रखने की क्षमता एवं घनघोर अंधेरे में भी प्रकाश किरण को पाने की योग्यता। अन्य कई गुण प्राप्त होने के उपरान्त भी यदि चरित्र दुर्बल है तो पतन की आशंका बनी रहती है, किन्तु यदि चरित्र सबल है तो दूसरी कमजोरियों के दबाव को झेलते हुए भी रास्ते से भटकाव नहीं होता। इसके लिये देव को भी समझना चाहिये और राक्षसी को भी पहचानना चाहिये। देव रक्षा करता है अर्थात् अपनी ही दैविक वृत्तियाँ एवं प्रवृत्तियाँ अपने जीवन की यथार्थता को जीवन्त बनाती है तथा उस जीवट को बनाये रखती है। यदि देव को रक्षा पहले ही स्वीकार कर लें तो राक्षसी से भेंट होने का अवसर ही नहीं आता है। फिर भी राक्षसी वृत्तियाँ एवं मनोवृत्तियाँ सामान्य मनुष्य के मन में न्यूनाधिक रूप से उभरती रहती है। यदि विवेकशून्य होकर उनके मोह में मनुष्य फंस जाता है और अवसर मिलने पर भी उनसे विरत नहीं हो पाता है तो अन्य प्रकार से जीवन को कितना भी भले अच्छा क्यों न बनाया हो, उसे राक्षसी के भेंट चढ़ना ही पड़ता है। मानव जीवन की यथार्थता का रहस्य है मनुष्य की चरित्रनिष्ठा एवं चरित्रसम्पन्नता। जीवन को स्थिरता, समतोलता एवं सुदृढ़ता देने वाली शक्ति है चरित्र की शक्ति और इस यथार्थ को यदि नहीं खोजा गया और प्राप्त नहीं किया गया तो समझिए कि अन्य सब कुछ पाकर भी कुछ नहीं पाया। इस यथार्थ को कहां-कहां खोजना होगा, यह कैसे मिलेगा, उसे जीवन में आत्मसात किस रीति से किया जा सकेगा तथा उसके बल से जीवन को सबल एवं समुन्नत किस मार्ग पर चलकर बनाया जा सकेगा-इन सभी बिन्दुओं पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए एवं क्रियाशीलता के चरण शीघ्रातिशीघ्र उठाने चाहिए ताकि ज्ञान-विज्ञान के अब तक के विकास को उपयोगी एवं सार्थक सिद्ध किया जा सके। अब तक के विकास का पोस्टमार्टम तथा उसका उजला पक्ष : ___ ज्ञान-विज्ञान के अब तक के विकास पर बारीक नजर डालें तो साफ होगा कि इसने पूर्व और पश्चिम को एक करते हुए पूरे संसार के पटल पर ज्ञान एवं विज्ञान का प्रकाश फैलाया है। पूर्व ज्ञान के विकास में अग्रणी रहा तो पश्चिम विज्ञान ने दूरी पर जीत हासिल कर ली तो संसार सिमटता गया और ज्ञान-विज्ञान का प्रकाश सब ओर फैलाया गया। इस प्रकाश ने सर्वत्र संस्कृति एवं सभ्यता का उन्नत वातावरण बनाया तथा एकीकृत संस्कृति एवं सभ्यता के फैलाव की प्रेरणा दी। ___ भारत में उत्तरवैदिक काल तक हिंसा के प्रयोग के बारे में दो धारणाएं थी-एक तो यह कि 'वैदिकी हिंसा-हिंसा न भवति' अर्थात् यज्ञ आदि धार्मिक क्रियाकांडों में की जाने वाली हिंसा को हिंसा ही नहीं माना। दूसरे 'शठे शाठ्यं समाचरेत्' के अनुसार हिंसा के विरुद्ध हिंसा का प्रयोग उचित है। किन्तु जैन धर्म ने वैदिकी हिंसा का डट कर विरोध किया और बताया कि हिंसा कैसी भी हो 67
SR No.002327
Book TitleSucharitram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayraj Acharya, Shantichandra Mehta
PublisherAkhil Bharatvarshiya Sadhumargi Shantkranti Jain Shravak Sangh
Publication Year2009
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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