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________________ मनुष्ययोनि का विशेष निरूपण अथ मनुष्ययोनिः ब्राह्मण क्षत्रियवैश्यशूद्रान्त्यजाश्चेति मनुष्याः पञ्चविधाः। यथासंख्यं पञ्च वर्गाः क्रमेण ज्ञातव्याः। तत्रालिङ्गिरतेषु पुरुषः। अभिधूमितेषु स्त्री। दग्धेषु नपुंसकः। तत्रालिङ्गिते गौरः। अभिधूमिते श्यामः। दग्धेषु कृष्णः। अर्थ-मनुष्य योनि के ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र और अन्त्यज ये पाँच भेद हैं। प्रथम, द्वितीय आदि पाँचों वर्गों को क्रम से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र और अन्त्यज समझना चाहिए अर्थात् अ ए क च ट त प य श ये ब्राह्मण वर्ण; आ ऐ ख छ ठ थ फ र ष ये क्षत्रिय वर्ण; इ ओ ग ज ड द ब ल स ये वैश्य वर्ण; ई औ घ झ ढ ध भ व ह ये शूद्र वर्ण और उ ऊ ङ ञ ण न म अं अः ये अन्त्यज वर्ण संज्ञक होते हैं। इन पाँचों वर्गों में भी आलिंगित प्रश्न वर्ण होने पर पुरुष, अधिधूमित होने पर स्त्री और दग्ध होने पर नपुंसक होते हैं। पुरुष, स्त्री आदि में भी आलिंगित प्रश्न वर्ण होने पर गौर वर्ण, अभिधूमित होने पर श्याम वर्ण और दग्ध होने पर कृष्ण वर्ण के व्यक्ति होते हैं। विवेचन-मनुष्य योनि के अवगत हो जाने पर ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि वर्ण विशेष का ज्ञान करने के लिए प्रश्नलग्नानुसार फल कहना चाहिए। यदि शुक्र और बृहस्पति बलवान् होकर लग्न को देखते हों या लग्न में हों तो ब्राह्मण वर्ण; मंगल और रवि बलवान् होकर लग्न को देखते हों या लग्न में हों तो क्षत्रिय वर्ण, चन्द्रमा बलवान् होकर लग्न को देखता हो या लग्न में हो तो वैश्य वर्ण, बुध बलवान् होकर लग्न को देखता हो या लग्न में हो तो शूद्र वर्ण और राहु एवं शनैश्चर दोनों ही बलवान् होकर लग्न को देखते हों या लग्न में हों तो अन्त्यज वर्ण जानना चाहिए। विशेष प्रकार के मनुष्यों के ज्ञान करने का नियम यह है कि सूर्य अपनी उच्च राशि (मेष) में उदित हो और शुभ ग्रह से दृष्ट हो तो सम्राट्, केवल उच्च राशि में रहने पर जमींदार, स्वक्षेत्रग (सिंह राशि में) होने से मन्त्री, मित्र गृह में मित्र दृष्ट होने से राजाश्रित योद्धा ोता है। उपर्युक्त भिन्न सूर्य की स्थिति हो तो धातु का बर्तन बनानेवाला (ठठेरा), कुम्हार, शंखच्छेदी आदि निम्न श्रेणी का व्यक्ति समझना चाहिए। नर राशि में सूर्य यदि चन्द्र से दृष्ट या युक्त हो तो वैद्य, बुध से युक्त या दृष्ट हो तो चोर और राहु से युक्त या दृष्ट होने पर विष देनेवाला चाण्डाल जानना चाहिए। शनि के बली होने से वृक्ष काटनेवाला (लकड़हारा), राहु के बली होने पर धीवर या नाई, चन्द्रमा के बली होने से नर्तक एवं शुक्र के बली होने से कुम्हार तथा चूना बेचनेवाला समझना चाहिए। - यदि लग्न में कोई सौम्य ग्रह बलवान् होकर स्थित हो तो पृच्छक के मन में अपनी १. तुलना-के. प्र. रं. पृ. ५८-६०। ग. म. पृ. ८ । भु. दी. पृ. २३-२६ । ज्ञा. प्र. पृ. २२-२३। चं. प्र. श्लो. २५८-२६६। २. “ब्राह्मणाः, क्षत्रियाः, वैश्याः, शूद्राः, अन्त्यजाश्चेति"-ता. मू.। ३. “तत्र द्विपदे त्रिविधो भेदः। पुरुषस्त्रीनपुंसकभेदात्। आलिङ्गितेन पुरुषः। अभिधूमितेन नारी। दग्धकेन . षण्ढः।”-के. प्र. सं. १८, ग. म. पृ. ६। भु. दी. पृ. २४ । प्र. वै. पृ. १०६-७। न. ज. प. ३१ । च. प्र. २७१-७३। ४. "गौरः श्यामस्तथा सम इत्यादि"-ग. म. पृ. ६ । भु. दी. प. २४-२५ । बृ. जा. पृ. २७ । चं. प्र. श्लो. ४६-४८ । केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि : ६७
SR No.002323
Book TitleKevalgyan Prashna Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages226
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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