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________________ जाति के मनुष्य की चिन्ता, तृतीय भाव में स्थित हो तो भाई की चिन्ता, चतुर्थ भाव में स्थित हो तो मित्र की चिन्ता, पंचम भाव में स्थित हो तो माता एवं पुत्र की चिन्ता। छठे भाव में स्थित हो तो शत्रु की चिन्ता, सातवें भाव में स्थित हो तो स्त्री की चिन्ता, आठवें भाव में स्थित हो तो मृतपुरुष की चिन्ता, नौवें भाव में स्थित हो तो मुनि या किसी बड़े धर्मात्मा पुरुष की चिन्ता, दसवें भाव में स्थित हो तो पिता की चिन्ता, ग्यारहवें भाव में स्थित हो तो बड़े भाई एवं गुरु आदि पूज्य पुरुषों की चिन्ता और बारहवें भाव में बलीग्रह के स्थित होने पर हितैषी की चिन्ता जाननी चाहिए। प्रश्नकाल के ग्रहों में सूर्य और शुक्र वक्री हों तथा इन दोनों में से कोई एक ग्रह अस्त हो तो पृच्छक के मन में परस्त्री की चिन्ता सप्तम भाव में बुध हो तो वेश्या की चिन्ता एवं सप्तम भाव में शनैश्चर हो तो नाईन, धोबिन आदि नीच वर्णों की स्त्रियों की चिन्ता जाननी चाहिए। यदि प्रश्न लग्न में बलवान् बुध और शनैश्चर स्थित हो अथवा इन दोनों में से किसी एक ग्रह की लग्न स्थान के ऊपर पूर्ण दृष्टि हो तो नपुंसक की चिन्ता; शुक्र और चन्द्रमा इन दोनों में से कोई एक ग्रह लग्नेश होकर लग्न में स्थित हो अथवा इनकी पूर्ण दृष्टि हो तो स्त्री की चिन्ता एवं बलवान् सूर्य, बृहस्पति और मंगल में से कोई एक ग्रह अथवा तीनों ही ग्रह लग्न में स्थित हों या लग्न को देखते हों तो पुरुष की चिन्ता समझनी चाहिए। यदि लग्न में सूर्य हो तो पाखण्डियों की चिन्ता, तीसरे और चौथे स्थान में स्थित हो तो कार्य की चिन्ता, पाँचवें स्थान में स्थित हो तो पुत्र और कुटुम्बियों की चिन्ता, छठे स्थान में सूर्य के स्थित होने से कार्य और मार्ग की चिन्ता, सातवें स्थान में स्थित होने पर पत्नी की चिन्ता, आठवें भाव में सूर्य के स्थित रहने पर नौका की चिन्ता, नौवें स्थान में सूर्य के रहने पर अन्य नगर के मनुष्य की चिन्ता, दसवें भाव में सूर्य के रहने से सरकारी कार्यों की चिन्ता; ग्यारहवें भाव में सूर्य के रहने से टैक्स, कर आदि के वसूल करने की चिन्ता और बारहवें भाव में सूर्य के रहने से शत्रु से हानि की चिन्ता होती है। - प्रथम स्थान में चन्द्रमा हो तो धन की चिन्ता, द्वितीय में हो तो धन के सम्बन्ध में कुटुम्बियों के झगड़ों की चिन्ता, तृतीय स्थान में हो तो वृष्टि की चिन्ता, चतुर्थ स्थान में हो तो माता की चिन्ता, पंचम स्थान में हो तो पुत्रों की चिन्ता, छठे स्थान में हो तो निज रोग की चिन्ता, सातवें स्थान में हो तो स्त्री की चिन्ता, आठवें स्थान में हो तो भोजन की चिन्ता, नौवें स्थान में हो तो मार्ग चलने की चिन्ता, दसवें स्थान में हो तो दुष्टों की चिन्ता, ग्यारहवें स्थान में स्थित हो तो वस्त्र, धूप, कपूर, अनाज आदि वस्तुओं की चिन्ता, एवं बारहवें भाव में चन्द्रमा स्थित हो तो चोरी गयी वस्तु के लाभ की चिन्ता कहनी चाहिए। लग्न स्थान में मंगल हो तो कलहजन्य चिन्ता, द्वितीय भाव में मंगल हो तो नष्ट हुए धन के लाभ की चिन्ता, तृतीय स्थान में होने से भाई और मित्र की चिन्ता, चतुर्थ स्थान में रहने से शत्रु, पशु एवं क्रय-विक्रय की चिन्ता, पाँचवें स्थान में रहने से क्रोधी मनुष्य के भय की चिन्ता, छठे स्थान में रहने से सोना, चाँदी, अग्नि आदि की चिन्ता, सातवें स्थान में रहने से दासी, दास, घोड़ा आदि की चिन्ता, आठवें स्थान में रहने से मन्दिर की चिन्ता, नौवें स्थान में रहने से मार्ग की चिन्ता, दसवें स्थान में रहने से वाद-विवाद, मुकद्दमा आदि ६८: केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि
SR No.002323
Book TitleKevalgyan Prashna Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages226
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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