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३. जिस समय प्रश्नकर्ता आए, उस समय का इष्टकाल बनाकर दूना करें और उसमें एक जोड़कर तीन का भाग देने पर एक शेष में जीवचिन्ता, दो शेष में धातुचिन्ता, शून्य में मूलचिन्ता कहनी चाहिए। जैसे-मोहन ने आठ बजे आकर प्रश्न किया, इस समय का इष्टकाल पूर्वोक्त विधि के अनुसार ६ घटी ३० पल हुआ, इसे दूना किया तो १३ घटी हुआ, इसमें एक जोड़ा तो १३ + १ = १४ आया, पूर्वोक्त नियमानुसार तीन का भाग दिया तो १४ : ३ = ४ लब्ध और २ शेष रहा, इसका फल धातुचिन्ता है। ___४. पृच्छक पूर्व की ओर मुंह करके प्रश्न करे तो धातुचिन्ता, दक्षिण की ओर मुँह करके प्रश्न करे तो जीवचिन्ता, उत्तर की ओर मुँह करके प्रश्न करे तो मूलचिन्ता और पश्चिम की ओर मुँह करके प्रश्न करे तो मिश्रित-धातु, मूल एवं जीवसम्बन्धी मिला हुआ प्रश्न कहना चाहिए।
५. पृच्छक शिर को स्पर्श कर प्रश्न करे तो जीवचिन्ता, पैर को स्पर्श करता हुआ प्रश्न करे तो मूल चिन्ता और कमर को स्पर्श करता हुआ प्रश्न करे तो धातुचिन्ता कहनी चाहिए। भुजा, मुख और शिर को स्पर्श करता हुआ प्रश्न करे तो शुभदायक जीवचिन्ता, हृदय एवं उदर को स्पर्श करता हुआ प्रश्न करे तो धनचिन्ता, गुदा और वृषण को स्पर्श करता हुआ प्रश्न करे तो अधम मूलचिन्ता एवं जानु, जंघा और पाद का स्पर्श करता हुआ प्रश्न करे तो सामान्य जीवचिन्ता का प्रश्न कहना चाहिए।
६. पूर्वाह्नकाल के प्रश्न के पिण्ड को तीन से भाग देने पर एक शेष में धातु, दो में मूल और शून्य शेष में जीवचिन्ता का प्रश्न कहना चाहिए। मध्याह्न काल के प्रश्न के पिण्ड में तीन का भाग देने पर एकादि शेष में क्रमशः मूल, जीव और धातुचिन्ता का प्रश्न कहना चाहिए। इसी प्रकार दग्ध काल के प्रश्न के पिण्ड में तीन का भाग देने से एक शेष में जीव, दो में धातु और शून्य में मूलसम्बन्धी प्रश्न कहना चाहिए।
७. समराशि में प्रथम नवांश लग्न हो तो जीव, द्वितीय में मूल, तृतीय में धातु, चतुर्थ में जीव, पंचम में मूल, छठे में धातु, सातवें में जीव, आठवें में मूल और नौवें में धातु-सम्बन्धी प्रश्न समझना चाहिए। विषमराशि में प्रथम नवांश लग्न हो तो धातु, द्वितीय में मूल, तीसरे में जीव, चौथे में धातु, पाँचवें में मूल, छठे में जीव, सातवें में धातु, आठवें में मूल और नौवें में जीव सम्बन्धी प्रश्न होता है।
जीवयोनि के भेद तत्र जीवः द्विपदः, चतुष्पदः, अपदः, पादसंकुलेति चतुर्विधः अ ए क च ट त प य शाः द्विपदाः। आ ऐ ख छ ठ थ फ र षाश्चतुष्पदाः। इ ओ ग ज ड द ब ल सा अपदाः। ई औ घ झ ढ ध भ व हाः पादसंकुलाः भवन्ति।
१. तुलना-के. प्र. र. पृ. ५४-५६ । के. प्र. सं. पृ. १८ । ग. म. पृ. ७। ष. प. भ. टी. प. ८ । भु. दी. पृ.
२२। प्र. कौ. पृ. ६ । प्र. कु. पृ. १५ । प्र. वै. पृ. १०६ । २. पादसंकुलश्चेति-क. मू.।
केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि : ६३