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विवेचन-प्रश्न दो प्रकार के होते हैं-मानसिक और वाचिक। वाचिक प्रश्न में प्रश्नकर्ता जिस बात को पूछना चाहता है उसे ज्योतिषी के सामने प्रकट कर उसका फल ज्ञात करता है। लेकिन मानसिक प्रश्न में पृच्छक अपने मन की बात नहीं बतलाता है, केवल प्रतीक-फल, पुष्प, नदी आदि नाम के द्वारा ही ज्योतिषी उसके मन की बात बतलाता है। संसार में प्रधान रूप से तीन प्रकार के पदार्थ होते हैं-जीव, धातु और मूल। मानसिक प्रश्न मूलतः उपर्युक्त तीन ही प्रकार के होते हैं। आचार्यों ने सुविधा के लिए इनका नाम तीन प्रकार की योनि-जीव, धातु और मूल रखा है। कभी-कभी धोखा देने के लिए भी पृच्छक आते हैं, अतः सत्यासत्य का निर्णय करने के लिए लग्न बनाकर निम्न प्रकार से वास्तविक बात का ज्ञान करना चाहिए। “पृच्छालग्ने यदि चन्द्रशनी स्यातां तथा कुम्भे रविः, बुधोऽस्तमितश्च तदा ज्ञेयमयं पृच्छकः कपटतयाऽऽगतोऽस्ति; अन्यथा सत्यतयेति” अर्थात् यदि प्रश्न लग्न में चन्द्रमा और शनिश्चर हों, कुम्भ राशि का रवि हो और बुध अस्त हो तो पृच्छक को कपट रूप से आया हुआ समझना चाहिए और लग्न की स्थिति इससे विलक्षण हो तो . उसे वास्तविक पृच्छक समझना चाहिए। वास्तविक पृच्छक के प्रतीक सम्बन्धी प्रश्नाक्षर जीवयोनि के हों तो जीवसम्बन्धी चिन्ता, धातु योनि के हों तो धातुसम्बन्धी चिन्ता और मूलयोनि के होने पर मूलसम्बन्धी चिन्ता-मनःस्थित विचारधारा समझनी चाहिए। योनियों का विशेष ज्ञान निम्न प्रकार से भी किया जा सकता है
१. दिनमान में तीन का भाग देने से लब्ध एक-एक भाग की उदयवेला, मध्यवेला एवं अस्तंगतवेला ये तीन संज्ञाएँ होती हैं। उदयवेला में तीन का भाग देने पर प्रथम भाग में जीवसम्बन्धी प्रश्न, द्वितीय भाग में धातुसम्बन्धी प्रश्न और तृतीय भाग में मूलसम्बन्धी प्रश्न जानना चाहिए। मध्यवेला में तीन का भाग देने से क्रमशः धातु, मूल और जीवसम्बन्धी चिन्ता और अस्तंगतवेला में तीन का भाग देने से क्रमशः मूल, जीव एवं धातुसम्बन्धी चिन्ता समझनी चाहिए। जैसे-किसी ने आठ बजे प्रातःकाल आकर प्रश्न किया। इस दिन का दिनमान ३३ घटी है। इसमें तीन का भाग देने से ११ घटी उदयवेला, ११ घटी मध्यवेला और ११ घटी अस्तंगतवेला का प्रमाण हुआ। ११ घटी प्रमाण उदयवेला में तीन का भाग दिया तो ३ घटी ४० पल एक भाग का प्रमाण हुआ। पूर्वोक्त क्रिया के अनुसार ७ बजे प्रातः काल का इष्टकाल ६ घटी ३० पल है। यह इष्टकाल उदयवेला के द्वितीय भाग के भीतर है, अतः इसका फल धातुसम्बन्धी चिन्ता जाननी चाहिए। इसी प्रकार मध्य और अस्तंगतवेला के प्रश्नों का ज्ञान करना चाहिए।
२. प्रश्नकर्ता से कोई इष्टांक पूष्ट कर उसे दूना कर, एक और जोड़ दें, फिर इस योगफल में तीन का भाग देकर शेष अंकों के अनुसार फल कहें अर्थात् एक शेष में जीवचिन्ता, दो शेष में धातुचिन्ता और शून्य शेष में मूलसम्बन्धी चिन्ता समझनी चाहिए। जैसे-मोहन प्रश्न पूछने आया। ज्योतिषी ने उससे कोई अंक पूछा। उसने १० का अंक बताया। उपर्युक्त नियम के अनुसार १० x २ + १ = २१, २१ २ ३ = ७ लब्ध शेष शून्य रहा; शून्य में मूलसम्बन्धी चिन्ता कहनी चाहिए।
६२ : केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि