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________________ अष्टम स्थान को छोड़कर तृतीय, षष्ठ और एकादश स्थान में अशुभ ग्रह हों, तो पूछनेवाले के मनोरथों की सिद्धि होती है। केन्द्र का स्वामी लग्न में अथवा उसका मित्र केन्द्र में हो और पाप ग्रह केन्द्र और बारहवें भाव के अतिरिक्त, अन्य स्थानों में हों तो कार्यसिद्धि होती है। पुरुष राशि अर्थात् मेष, मिथुन, सिंह, तुला धनु और कुम्भ प्रश्नलग्न हों और लग्न, चतुर्थ, सप्तम और दशम स्थान में शुभ ग्रह हों तो भी कार्य की सिद्धि होती है। कन्या, तुला, मिथुन, कुम्भ और नर संज्ञक राशियाँ प्रश्नलग्न हों और लग्न में शुभग्रह हों तथा पापग्रह ग्यारहवें और बारहवें स्थान में हों तो भी कार्य की सिद्धि समझनी चाहिए। चतुष्पद अथवा द्विपद राशियाँ लग्न में हों और पापग्रह से युक्त हों, उन पाप ग्रहों से दृष्ट शुभ ग्रहों की लग्न पर दृष्टि होने से नर राशिका लग्न हो तो शुभ फल होता है। लग्न और चन्द्रमा के ऊपर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो तो शुभ और पाप ग्रहों की दृष्टि हो तो अशुभ फल जानना चाहिए। यदि लग्न का स्वामी चतुर्थ को और कार्यभाव का स्वामी कार्यभाव को त्रिपाद दृष्टि से देखे अथवा दोनों की परस्पर दृष्टि हो एवं चन्द्रमा लग्नेश और कार्येश इन दोनों को देखता हो तो पूर्वरीति से कार्य की सिद्धि कहनी चाहिए। अनभिहत प्रश्नाक्षर और उनका फल इदानीमनभिहतानाही-अकारास्वरसंयुक्तानन्यस्वरसंयोगवर्जितान् अ क च ट त प य शादीन् ङ अ ण न मांश्च प्रश्ने पतिताननभिहतान् ब्रुवन्ति। व्याधिपीडा परवर्गे शोकसन्तापदुःखभयपीडाञ्च निर्दिशेत्। अर्थ-अब अनभिहत प्रश्नाक्षरों को कहते हैं-अकार स्वरसहित और अन्य स्वरों से रहित अ क च ट त प य श ङ ञ ण न म ये प्रश्नाक्षर हों तो अनभिहत प्रश्न होता है। यह अनभिहत प्रश्न स्ववर्गाक्षरों में हो तो व्याधि और पीड़ा एवं अन्य वर्गाक्षरों में हो तो शोक, सन्ताप, दुःख, भय और पीड़ा फल जानना चाहिए। विवेचन-किसी-किसी के मत से प्रथम-पंचम, प्रथम-चतुर्थ, द्वितीय-पंचम और तृतीय-पंचम वर्ग से संयुक्त वर्णों की अनभिहत संज्ञा बतायी गयी है। चन्द्रोन्मीलनप्रश्न के अनुसार पूर्व और उत्तर वर्ग संयुक्त वर्गों की अनभिहत संज्ञा होती है और जब प्रश्नाक्षरों में केवल पंचमवर्ग के वर्ण हों तो उसे अघातन कहते हैं। अघातन प्रश्न का फल अत्यन्त अनिष्टकारक होता है। इस ग्रन्थ के अनुसार अनभिहत प्रश्न का फल रोग, शोक, दुःख, भय, धनहानि एवं सन्तानकष्ट होता है। जैसे-मोतीलाल प्रश्न पूछने आया। ज्योतिषी ने उनसे किसी फूल का नाम पूछा तो उसने चमेली का नाम लिया। चमेली प्रश्नवाक्य में अनभिहत प्रश्नाक्षर है या नहीं? यह जानने के लिए उपर्युक्त वाक्य का विश्लेषण किया तो १. तुलना-के. प्र. र., पृ. २८ । के. प्र. सं. प. ५। चं. प्र. श्लो. ३५। केरल सं., प. ५। ज्योतिष सं., प. ४। २. युक्तानि क. मू.। ३. स्ववर्गे परवर्गे व्याधिपीडितानां शोकसन्तापदुःखभयपीडां निर्दिशेत् क. मू.। केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि : ७६
SR No.002323
Book TitleKevalgyan Prashna Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages226
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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