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________________ कार्यहानि और अन्त में कार्यसाफल्य समझना चाहिए। चन्द्रोन्मीलन एवं केरलसंग्रहादि कुछ प्रश्नग्रन्थों के अनुसार असंयुक्त प्रश्नों का फल अच्छा नहीं है अर्थात् धन-हानि, शोक, दुःख, चिन्ता, अपयश एवं कलह-वृद्धि इत्यादि अनिष्ट फल समझना चाहिए। असंयुक्त एवं अभिहत प्रश्नाक्षर और उनका फल असंयुक्तानि द्वितीयवर्गाक्षराण्यूज़ प्रथमवर्गाक्षराण्यधः परिवर्तनतः प्रथमद्वितीयान्यसंयुक्तानि भवन्ति खक, छच इत्यादि तृतीयवर्गाक्षराण्यूचं द्वितीयवर्गाक्षराण्यधः पतितान्यभिहतानि भवन्ति गख इत्यादि; एवं चतुर्थान्युपरि तृतीयान्यधः, घग इत्यादि। पञ्चमाक्षराण्यधः२, उपरि चतुर्थाक्षराणि चेदप्यभिहतानि भवन्ति ङ्घ, अझ इत्यादि; स्ववर्गे स्वकीयचिन्ता परवर्गे परकीयचिन्ता। अर्थ-असंयुक्त प्रश्नाक्षरों को कहते हैं-द्वितीय वर्गाक्षर के वर्ण ऊपर और प्रथम वर्गाक्षर के वर्ण नीचे रहने पर उनके परिवर्तन से प्रथम-द्वितीय वर्गजन्य असंयुक्त होते हैं-जैसे द्वितीय वर्गाक्षर 'ख' को ऊपर रखा और प्रथम वर्गाक्षर 'क' को नीचे रखा और इन दोनों का परिवर्तन किया अर्थात् प्रथम के स्थान पर द्वितीय को और द्वितीय के स्थान पर प्रथम को रखा तो खक, छच इत्यादि विकल्प बने। तृतीय वर्ग के वर्ण ऊपर और द्वितीय वर्ग के वर्ण नीचे हों तो उनके परिवर्तन से द्वितीय तृतीय वर्गजन्य अभिहत होते हैं-जैसे तृतीय वर्ग के वर्ण ग को ऊपर रखा और द्वितीय वर्ग के वर्ण ख को नीचे अर्थात् ख ग इस प्रकार रखा, फिर इनका परिवर्तन किया तो तृतीय के स्थान पर द्वितीय वर्ण को रखा और द्वितीय वर्ग के वर्ण के स्थान पर तृतीय वर्ग के वर्ण को रखा तो गख, जछ, डठ इत्यादि विकल्प बने। इसी प्रकार चतुर्थ वर्ग के वर्ण ऊपर और तृतीय वर्ग के वर्ण नीचे हों, तो उनके परिवर्तन से तृतीय-चतुर्थ वर्गजन्य अभिहत होते हैं-जैसे चतुर्थ वर्ग का वर्ण 'घ' ऊपर और तृतीय वर्ग का 'ग' नीचे हो अर्थात् ग घ इस प्रकार की स्थिति हो तो इसके परस्पर परिवर्तन से अर्थात् चतुर्थ वर्गाक्षर के स्थान पर तृतीय वर्गाक्षर के पहुंचने से और तृतीय वर्गाक्षर के स्थान पर चतुर्थ वर्गाक्षर के पहुंचने से तृतीय-चतुर्थ वर्गजन्य अभिहत घग, झज, ढड इत्यादि विकल्प बनते हैं। पंचम वर्ग के अक्षर ऊपर और चतुर्थ वर्ग के अक्षर नीचे हों तो इनके परिवर्तन से चतुर्थ-पंचमवर्गजन्य अभिहत होते हैं; जैसे ङघ, अझ इत्यादि। स्व वर्ग के प्रश्नाक्षर होने पर स्वकीय चिन्ता और परवर्ग के प्रश्नाक्षर होने पर परकीय चिन्ता होती है। यहाँ स्ववर्ग के संयोग से तात्पर्य कवर्ग, चवर्ग आदि वर्गों के वर्गों के संयोग से है अर्थात् खक, छच, जछ, उघ, घग, अझ, झज इत्यादि संयोगी वर्ण स्ववर्ग संयोगी कहलाएँगे और भिन्न-भिन्न वर्गों के वर्गों के संयोगी विकल्प पर वर्ग कहलाते हैं अर्थात् खच, छक, जख, अघ, झग, १. “प्रश्ना? चेत् क्रमगावभिहितसंज्ञम्”–के. प्र. र. पृ. २७ । “यदि प्रष्टा प्रश्नसमये वामहस्तेन वामाङ्गं स्पृशति तदाऽभिहतः प्रश्नः, अलाभकरो भवति।"-के. प्र., स. ५ २. पञ्चमाक्षराण्युपरिचतुर्थाक्षराण्यधः-क. मू.। केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि : ७७
SR No.002323
Book TitleKevalgyan Prashna Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages226
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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