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वृद्धि होती है और पाप ग्रह संयुक्त, बुध, क्षीण चन्द्रमा, शनि, मंगल और सूर्य से युत या देखे जाते हों तो हानि होती है।
असंयुक्त प्रश्नाक्षर अथासंयुक्तानि प्रथमद्वितीयौ कख, चछ इत्यादि; द्वितीयचतुर्थी खग छज इत्यादि; तृतीयचतुर्थी गघ, जझ इत्यादि; चतुर्थपञ्चमौ घङ, झज इत्यादि।
अर्थ-असंयुक्त प्रश्नाक्षर प्रथम-द्वितीय, द्वितीय-चतुर्थ, तृतीय-चतुर्थ और चतुर्थ-पंचम वर्ग के संयोग से बनते हैं। १-प्रथम और द्वितीय वर्गाक्षरों के संयोग से-कख, चछ, टठ, तथ, पफ, यर इत्यादि; २-द्वितीय और चतुर्थ वर्गाक्षरों के संयोग से-खघ, छझ, ठंढ, थध, फभ, रव इत्यादि; ३-तृतीय और चतुर्थ वर्गाक्षरों के संयोग से-गघ, जझ, डढ, दध, बभ, यल इत्यादि एवं ४-चतुर्थ और पंचम वर्गाक्षरों के संयोग से घङ, झञ, ढण, धन, भम इत्यादि विकल्प बनते हैं।
विवेचन-प्रस्तुत ग्रन्थ के अनुसार प्रश्नकर्ता के प्रश्नाक्षर प्रथम-द्वितीय द्वितीय-चतुर्थ, तृतीय-चतुर्थ, और चतुर्थ-पंचम वर्ग के हों तो असंयुक्त प्रश्न समझना चाहिए। प्रश्नवाक्य में असंयुक्त प्रश्नों का निर्णय करने के लिए प्रश्नों का सम्बन्ध क्रम से लेना चाहिए। असंयुक्त प्रश्न होने से फल की प्राप्ति बहुत दिनों के बाद होती है। यदि प्रथम-द्वितीय वर्गों के अक्षर मिलने से असंयुक्त प्रश्न हो तो धन-लाभ, कार्य-सफलता और राज-सम्मान; द्वितीय-चतुर्थ वर्गाक्षरों के संयोग से असंयुक्त प्रश्न हो तो मित्रप्राप्ति, उत्सववृद्धि और कार्यसाफल्य; तृतीय-चतुर्थ वर्गाक्षरों के संयोग से असंयुक्त प्रश्न हो तो अल्पलाभ, पुत्रप्राप्ति, मांगल्यवृद्धि
और प्रियजनों से विवाद एवं चतुर्थ-पंचम वर्गाक्षरों के संयोग से असंयुक्त प्रश्न हो तो घर में विवाहादि मांगलिक उत्सवों की वृद्धि, स्वजन-प्रेम, यशप्राप्ति, महान् कार्यों में लाभ और वैभव-वृद्धि इत्यादि फलों की प्राप्ति होती है। यदि प्रश्नकर्ता का वाचिक प्रश्न हो और उसके प्रश्नवाक्य के अक्षर असंयुक्त हों तो पृच्छक को कार्य में सफलता मिलती है। आचार्यप्रवर गर्ग के मतानुसार असंयुक्त प्रश्नों का फल पृच्छक के मनोरथ को पूरण करनेवाला होता है। कुछ ग्रन्थों में बताया गया है कि यदि पृच्छक रास्ते में हो, शयनागार में हो, पालकी में बैठा हो या मोटर, साइकिल, घोड़े, हाथी अथवा अन्य किसी सवारी पर सवार हो, भावरहित हो और फल या द्रव्य हाथ में न लिये हो, तो असंयुक्त प्रश्न होता है। इस प्रश्न में बहुत दिनों के बाद लाभादि सुख होता है। कहीं-कहीं यह भी बताया गया है कि पृच्छक पश्चिम की दिशा की ओर मुँह कर प्रश्न करे तथा प्रश्न. समय में आकर कुर्सी, टेबुल, बेंच या अन्य काष्ठ की चीजों को छूता हुआ या नोचता हुआ बातचीत आरम्भ करे और पृच्छक के मुख से निकला हुआ प्राथमिक वाक्य दीर्घाक्षरों से शुरू हुआ हो तो असंयुक्त प्रश्न होता है। इसका फल प्रारम्भ में
१. “समवर्णयोश्च तद्वन्नगवर्गाणामसंयुक्तः।”-के. प्र. र., पृ. २७ । २.. द्वितीय-तृतीयौ-क. मू.। ३. के. प्र. सं. पृ. ४।
७६ : केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि