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________________ करना आवश्यक है। अतः छत्र लग्न का ज्ञान करने के लिए मेषादि वीथियों को जान लेना चाहिए। वृष, मिथुन, कर्क और सिंह इन चार राशियों की मेष वीथी; वृश्चिक, धनु, मकर और कुम्भ इन चार राशियों की मिथुन वीथी और मेष, मीन, कन्या और तुला इन चार राशियों की वृषभ वीथी जाननी चाहिए। आरूढ़ लग्न से वीथी की राशि जितनी संख्यक हो प्रश्नलग्न से उतनी ही संख्यक राशि छत्रलग्न कहलाती है। ज्ञानप्रदीपिकाकार के मतानुसार मेष प्रश्न लग्न की छत्र राशि वृष; वृष की मेष, मिथुन, कर्क और सिंह की छत्र राशि मेष, कन्या और तुला की मेष, वृश्चिक और धनु की मिथुन राशि मेष; कन्या और तुला की मेष, वृश्चिक और धनु की मिथुन; मकर की मिथुन; कुम्भ की मेष और मीन की वृष छत्र राशि है। प्रश्न समय में आरूढ़, छत्र और प्रश्न लग्न के बलाबल से प्रश्न का उत्तर देना चाहिए। प्रश्न का विशेष विचार करने के लिए भूत, भविष्य, वर्तमान, शुभाशुभ दृष्टि, पाँच मार्ग, चार केन्द्र, बलाबल, वर्ग, उदयबल, अस्तबल, क्षेत्र दृष्टि, नर, नारी, नपुंसक, वर्ण, मृग तथा नर आदि रूप, किरण, योजन, आयु, रस एवं उदयमान आदि बातों की परीक्षा करना अत्यावश्यक है। यदि प्रश्न करनेवाला एक ही समय में बहुत-से प्रश्न न पूछे तो पहला प्रश्न लग्न से, दूसरा चन्द्रमा से, तीसरा सूर्य के स्थान से, चौथा बृहस्पति के स्थान से पाँचवाँ प्रश्न बुध के स्थान से और छठा बली शुक्र या बुध इन दोनों में जो अधिक बलवान हो, उसी के स्थान से बतलाना चाहिए। ग्रह अपने क्षेत्र में, मित्र क्षेत्र में, अपने और मित्र के षड्वर्गों में, उच्चराशि में, मूलत्रिकोण में, नवांश में, शुभ ग्रह से दृष्ट होने पर बलवान् होते हैं। चन्द्रमा और शुक्र स्त्रीराशि-वृष, कर्क, कन्या, वृश्चिक, मकर और मीन इन राशियों में सूर्य, मंगल, बुध, गुरु और शनि पुरुष राशियों में-मेष, मिथुन, सिंह, तुला, धनु और कुम्भ इन राशियों में बलवान होते हैं। बुध और बृहस्पति लग्न में स्थित रहने से पूर्व दिशा में, सूर्य और मंगल चौथे स्थान में रहने से दक्षिण दिशा में, शनि सातवें भाव में रहने से पश्चिम दिशा में और शुक्र दसवें भाव में रहने से उत्तर दिशा में दिग्बली होते हैं। तथा चन्द्रमा और सूर्य उत्तरायण में अन्य भौमादि पाँच ग्रह वक्री, उज्ज्वल एवं पुष्ट रहने से बलवान होते हैं। सूर्य, शुक्र और बृहस्पति दिन में; मंगल और शनि रात्रि में; बुध दिन और रात्रि दोनों में; शुभ ग्रह शुक्लपक्ष में और अपने-अपने दिन, मास, ऋतु, अयन, वर्ष और काल होरा में एवं पाप ग्रह कृष्णपक्ष और अपने-अपने दिन, मास, ऋतु, अयन, वर्ष और काल होरा में बली होते हैं। इस प्रकार ग्रहों के कालबल का विचार करना चाहिए। प्रश्नकाल में स्थान बल और सम्बन्ध बल का विचार करना भी परमावश्यक है। तथा लग्न से विचार करनेवाले ज्योतिषी को भावविचार निम्न प्रकार से करना चाहिए। जो भाव अपने स्वामी से युत हों या देखे जाते हों अथवा बुध, गुरु और पूर्णचन्द्र से युक्त हों तो उनकी १. बृ. पा. हो., पृ. ७४१॥ २. ज्ञा. प्र. पृ. । ३. ज्ञा. प्र. पृ. ११ ४. ता. नी., पृ. २५४ । ज्ञा. प्र., पृ. ११ केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि : ७५
SR No.002323
Book TitleKevalgyan Prashna Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages226
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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