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राज्याधिकार, पितृ-कार्य, स्थान- भ्रष्टता एवं सम्मान प्राप्ति आदि बातों का विचार; ग्यारहवें भाव से कार्य की वृद्धि, लाभ, सवारी के सुख का विचार, कन्या, हाथी, घोड़ा, सोना आदि द्रव्यों के लाभालाभ का विचार एवं श्वसुर की चिन्ता इत्यादि बातों का विचार और बारहवें भाव से त्याग, भोग, विवाह, खेती, व्यय, युद्ध सम्बन्धी जय-पराजय, काका, मौसी, मामी के सम्बन्ध और उनके सुख-दुःख इत्यादि बातों का विचार करना चाहिए ।
उपर्युक्त बारह भावों में ग्रहों की स्थिति के अनुसार घटित होनेवाले फल का निर्णय करना चाहिए। ग्रहों को दीप्त', दीन, स्वस्थ, मुदित, सुप्त, प्रपीड़ित, मुषित, परिहीयमानवीर्य, प्रवृद्धवीर्य, अधिक वीर्य ये दस अवस्थाएँ कही गयी हैं । उच्चराशिक का ग्रह दीप्त, नीच राशि का दीन, स्वगृह का स्वस्थ, मित्रगृह मुदित, शत्रुगृह का सुप्त, युद्ध में अन्य ग्रहों के साथ पराजित हुआ निपीड़ित, अस्तंगत गृह मुषित, नीच राशि के निकट पहुँचा हुआ परिहीयमानवीर्य, उच्चराशि के निकट पहुँचा ग्रह प्रवृद्धवीर्य और उदित होकर शुभ ग्रहों के वर्ग में रहनेवाला ग्रह अधिकवीर्य कहलाता है । दीप्त अवस्था का ग्रह हो तो उत्तम सिद्धि; दीन अवस्था का ग्रह हो तो दीनता, स्वस्थ अवस्था का ग्रह हो तो अपने मन का कार्य, सौख्य एवं श्रीवृद्धि; मुदित अवस्था का ग्रह होंने से आनन्द एवं इच्छित कार्यों को सिद्धि; प्रसुप्त अवस्था का ग्रह हो तो विपत्ति; प्रपीड़ित अवस्था का ग्रह हो तो शत्रुकृत पीड़ा; मुषित अवस्था का ग्रह हो तो धनहानि; प्रवृद्धवीर्य हो तो अश्व, गज, सुवर्ण एवं भूमि लाभ और अधिकवीर्य ग्रह होने से शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक शक्ति का विकास एवं विपुल सम्पत्ति लाभ होता है । पहले बारह भावों में जिन-जिन बातों के सम्बन्ध में विचार करने के लिए बताया गया है, उन बातों को ग्रहों के बलाबल के अनुसार तथा दृष्टि, मित्रामित्र सम्बन्ध आदि विषयों को ध्यान में रखकर फल बतलाना चाहिए। किसी-किसी आचार्य के मत से प्रश्नकाल में ग्रहों के उच्च, नीच, मित्र, सम, शत्रु, शयनादिमान, बलाबल, स्वभाव और दृष्टि आदि बातों का विचारकर प्रश्न का फल बतलाना चाहिए। गणक को प्रश्न सम्बन्धी अन्य आवश्यक बातों पर विचार करने के साथ ही यह भी विचार कर लेना चाहिए कि पृच्छक दुष्टभाव से प्रश्न तो नहीं कर रहा है । यदि दुष्टभाव से प्रश्न करता है, तो उसे निष्फल समझकर उत्तर नहीं देना चाहिए । प्रश्न का सम्यक् फल तभी निकलता है, जब पृच्छक अपनी अन्तरंग प्रेरणा से प्रेरित हो प्रश्न करता है, अन्यथा प्रश्न का फल साफ नहीं निकलता। दुष्टभाव से किये गये प्रश्न की पहचान यह है कि यदि प्रश्न लग्न में चन्द्रमा ́ और शनि हो, सूर्य कुम्भ राशि में हो और बुध प्रभाहीन हो, तो दुष्टभाव से किया गया प्रश्न समझना चाहिए ।
१. दै. व., पृ. ३-४।
१. प्र. भू. पृ १३ ।
७२ : केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि