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________________ प्रश्न में पंचम और प्रथम वर्ग का संयोग पाया जाता है, इसलिए पृच्छक के अभीष्ट कार्य की सिद्धि होगी। प्रश्न का फल बतलाने का दूसरा नियम यह है कि पृच्छक से पहले उसके आने का हेतु पूछना चाहिए और उसी वाक्य को प्रश्नवाक्य मानकर उत्तर देना चाहिए। जैसे-मोतीलाल से उसके आने का हेतु पूछा, तो उसने कहा कि 'मुकद्दमे की हार-जीत' के सम्बन्ध में प्रश्न पूछने आया हूँ। अब गणक को मोतीलाल के मुख से कहे गये 'मुकद्दमे की हार जीत' इस प्रश्न वाक्य पर विचार करना चाहिए। इस वाक्य के प्रथम अक्षर 'म' में पंचम वर्ग के म् और उ का सम्बन्ध है, द्वितीय अक्षर 'क' में द्वितीय वर्ग के क् और प्रथम वर्ग के अ का संयोग है, तृतीय अक्षर '६' में तृतीय वर्ग के द् + द् और प्रथम वर्ग के अ का संयोग है और चतुर्थ अक्षर 'मे' में पंचम वर्ग के अक्षर म् और प्रथम वर्ग के ए का संयोग है। अतः इस वाक्य में प्रथम, तृतीय और पंचम वर्ग का योग है, इसलिए मुकद्दमे में जीत होगी। इसी प्रकार अन्य प्रश्नों के उत्तर निकालने चाहिए अथवा सबसे पहले प्रश्नकर्ता जिस वाक्य से बात-चीत आरम्भ करे, उसी को प्रश्नवाक्य मानकर उत्तर देना चाहिए। · प्रश्नलग्नानुसार प्रारम्भिक फल निकालने के लिए द्वादशभावों से निम्न प्रकार विचार करना चाहिए। लग्न से आरोग्य, पूजा, गुण, वर्तन, आयु, अवस्था, जाति, निर्दोषता, सुख, क्लेश, आकृति एवं शारीरिक स्थिति आदि बातों का विचार; धनभाव-द्वितीय भाव से माणिक्य, मोती, रत्न, धातु, वस्त्र, सुवर्ण, चाँदी, धान्य, हाथी, घोड़े आदि के क्रय-विक्रय का विचार; तृतीय भाव से भाई, नौकर, दास, शूरकर्म, भ्रातृचिन्ता एवं सद्बुद्धि लाभ आदि बातों के सम्बन्ध में विचार; चतुर्थ भाव से घर, निधि, ओषध, खेत, बगीचा, मिल, स्थान, हानि, लाभ, गृहप्रवेश, वृद्धि, माता-पिता, एवं देशसम्बन्धी कार्य इत्यादि बातों का विचार; पंचम भाव से विनय, प्रबन्ध-पटुता, विद्या, नीति, बुद्धि, गर्भ, पुत्र, प्रज्ञा, मन्त्रसिद्धि, वाक्चातुर्य एवं माता की स्थिति इत्यादि बातों का विचार; छठे भाव से अस्वस्थता, खोटी दशा, शत्रु-स्थिति, उग्रकर्म, क्रूरकर्म, शंका, युद्धकी सफलता, असफलता, मामा, भैंसादि पशु, रोग एवं मुकद्दमे की हार-जीत आदि बातों का विचार; सातवें भाव से स्वास्थ्य, काम विकार, भार्या सम्बन्धी विचार, भानजे सम्बन्धी कार्यों का विचार, चौरकर्म, बड़े कार्यों की सफलता और असफलता का विचार एवं सौभाग्य आदि बातों का विचार; अष्टम भाव से आयु, विरोध, मृत्यु, राज्य-भेद, बन्धुजनों का छिद्र, गढ़, किला आदि की प्राप्ति, शत्रु-वध, नदी-तैरना, कठिन कार्यों में सफलता प्राप्त करना एवं अल्पायु सम्बन्धी बातों का विचार; नौवें भाव से धार्मिक शिक्षा, दीक्षा, देवमन्दिर का निर्माण यात्रा, राज्याभिषेक, गुरु, धर्मकार्य, बावड़ी, कुआँ, तालाब आदि के निर्माण का विचार, साला, देवर और भावज के सुख-दुःख का विचार एवं जीवन में सुख, शान्ति आदि बातों का विचार; दसवें भाव से जल की वृष्टि, मान, पुण्य, १. दै.व., पृ. ७-१०। केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि : ७१
SR No.002323
Book TitleKevalgyan Prashna Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages226
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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