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पर भवनवासी, एकार की मात्रा होने पर व्यन्तर और ओकार की मात्रा होने पर ज्योतिष्कदेवयोनि होती है ।
मनुष्य योनि के ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र और अन्त्यज ये पाँच भेद हैं। अ एक चटतपयश ये वर्ण ब्राह्मण योनि संज्ञक; आ ऐ ख छ ठ थ फ र ष ये वर्ण क्षत्रिय योनि संज्ञक इ ओ ग ज ड द ब ल स ये वर्ण वैश्य योनि संज्ञक; ई औ घ झ द ध भ वह वर्ण शूद्रयोनि संज्ञक एवं उ ऊ ङ ञ ण न म अं अः ये वर्ण अन्त्यज योनि संज्ञक होते हैं। इन पाँचों योनियों के वर्णों में यदि अ इ ए ओ ये मात्राएँ हों तो पुरुष, आई ऐ औ ये मात्राएँ हों तो स्त्री एवं उ ऊ अं अः ये मात्राएँ हों तो नपुंसक संज्ञक होते हैं । पुरुष, स्त्री और नपुंसक में भी आलिंगित प्रश्न होने पर गौर वर्ण, अभिधूमित होने पर श्याम और दग्ध होने पर कृष्ण वर्ण होता है। आलिंगित प्रश्न होने पर बाल्यावस्था, अभिधूमित होने पर युवावस्था और दग्ध प्रश्न होने पर वृद्धावस्था होती है। आलिंगित प्रश्न होने पर सम - नकद अधिक बड़ा न अधिक छोटा, अभिधूमित होने पर लम्बा और दग्ध प्रश्न होने पर कुब्जक और बौना होता है ।
त थ द ध न प्रश्नाक्षरों के होने पर जलचर पक्षी और प फ ब भ म प्रश्नाक्षरों के होने पर थलचर पक्षियों की चिन्ता कहनी चाहिए। राक्षस योनि के दो भेद हैं- कर्मज और योनिज । भूत, प्रेतादि राक्षस कर्मज कहलाते हैं और असुरादि को योनिज कहते हैं । त थ द ध न प्रश्नाक्षरों के होने पर कर्मज और श ष स ह प्रश्नाक्षरों के होने पर योनिज राक्षस की चिन्ता समझनी चाहिए ।
चतुष्पद योनि के खुरी, नखी, दन्ती और श्रृंगी ये चार भेद हैं । यदि प्रश्नाक्षरों में आ और ऐ स्वर हों तो खुरी छ और ठ प्रश्नाक्षरों में हों तो नखी; थ और फ प्रश्नाक्षरों में हों तो दन्ती एवं र और ष प्रश्नाक्षरों में हों तो शृंगी योनि होती है। खुरी योनि के ग्रामचरः और अरण्यचर ये दो भेद हैं। आ, ऐ प्रश्नाक्षर के होने पर ग्रामचर-घोड़ा, गधा, ऊँट आदि मवेशी की चिन्ता और ख प्रश्नाक्षर होने पर वनचारी पशु-रोझ, हरिण, खरगोश आदि पशुओं की चिन्ता समझनी चाहिए ।
नखी योनि के ग्रामचर और अरण्यचर ये दो भेद हैं। प्रश्नवाक्य में छ प्रश्नाक्षर हों तो ग्रामचर अर्थात् कुत्ता, बिल्ली आदि नखी पशुओं की चिन्ता और ठ प्रश्नाक्षर हो तो अरण्यचर- व्याघ्र, चीता, सिंह, भालू आदि जंगली जीवों की चिन्ता कहनी चाहिए ।
दन्ती योनि के दो भेद हैं-ग्रामचर और अरण्यचर । प्रश्नवाक्य में थ अक्षर हो तो ग्रामचर - शूकर आदि ग्रामीण पालतू दन्ती जीवों की चिन्ता और फ अक्षर हो तो अरण्यचर जंगली हाथी, सेही आदि दन्ती पशुओं की चिन्ता कहनी चाहिए ।
शृंगी योनि के दो भेद हैं- ग्रामचर और अरण्यचर । प्रश्नवाक्य में र अक्षर हो तो भैंस, बकरी, गाय, बैल आदि पालतू सींगवाले पशुओं की चिन्ता एवं ष अक्षर हो तो अरण्यचर- हरिण, कृष्णसार आदि वनचारी सींगवाले पशुओं की चिन्ता समझनी चाहिए । अपद योनि के दो भेद हैं- जलचर और थलचर । प्रश्नवाक्य में इ ओ ग ज ड अक्षर
प्रस्तावना : ४५