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हों, तो जलचर-मछली, शंख इत्यादि की चिन्ता और द ब ल स अक्षर हों, तो साँप, मेंढक आदि थलचर अपदों की चिन्ता समझनी चाहिए।
पादसंकुल योनि के दो भेद हैं-अण्डज और स्वेदज। इ और घ झ ढ ये प्रश्नाक्षर अण्डज संज्ञक-भ्रमर, पंतग इत्यादि और ध भ व ह ये प्रश्नाक्षर स्वेदक संज्ञक-नँ, खटमल आदि हैं।
धातु योनि के भी दो भेद बताये हैं-धाम्य और अधाम्य। त द प ब उ अंस इन प्रश्नाक्षरों के होने पर धाम्य धातु योनि और घ थ ध फ ऊ ब ए इन प्रश्नाक्षरों के होने पर अधाम्य धातु योनि होती है। धाम्य योनि के आठ भेद हैं-सुवर्ण, चाँदी, ताँबा, राँगा, काँसा, लोहा, सीमा और पित्तल। धाम्य योनि के प्रकारान्तर से दो भेद हैं-घटित और अघटित। उत्तराक्षर प्रश्नवर्गों में रहने पर घटित और अधराक्षर रहने पर अघटित धातु योनि होती है। घटित धातु योनि के तीन भेद हैं-जीवाभरण, आभूषण, गृहाभरण-बर्तन और नाणक-सिक्के, नोट आदि। अ ए क च ट त प य श प्रश्नाक्षर हों, तो द्विपदाभरण-दो पैरवाले जीवों के आभूषण होते हैं। इसके तीन भेद हैं-देवता-भूषण, पक्षिआभूषण और मनुष्याभूषण। मनुष्याभूषण के शिरसाभरण, कर्णाभरण, नासिकाभरण, ग्रीवाभरण, हस्ताभरण, जंघाभरण और पादाभरण ये सात भेद हैं। इन आभूषणों में मुकुट, खौर, सीसफूल आदि शिरसाभरण; कानों में पहने जानेवाले कुण्डल, एरिंग आदि कर्णाभरण, नाक में पहनी जानेवाली लौंग, बाली, नथ आदि नासिकाभरण, कण्ठ में पहनी जानेवाली हँसुली, हार, कण्ठी आदि ग्रीवाभरण; हाथों में पहने जानेवाले कंकण, मुदरी, छल्ला, छाप आदि हस्ताभरण; जंघों में बाँधे जानेवाले धुंघरू, क्षुद्रघण्टिका आदि जंघाभरण और पैरों में पहने जानेवाले बिछुए, छल्ला, पाजेब आदि पादाभरण होते हैं। क ग ङ च ज ञ ट ड ण त द न प ब म य ल श स प्रश्नाक्षरों के होने पर मनुष्याभूषण की चिन्ता एवं ख घ छ झ ठ ढ थ ध फ. भ र व ष ह प्रश्नाक्षरों के होने पर स्त्रियों के आभूषणों की चिन्ता समझनी चाहिए।
उत्तराक्षर प्रश्नवर्गों के होने पर दक्षिण अंग का आभूषण और अधराक्षर प्रश्नवर्णों के होने पर वाम अंग का आभूषण समझना चाहिए। अ क ख ग घ ङ प्रश्नाक्षरों के होने पर या प्रश्नवर्गों में उक्त प्रश्नाक्षरों की बहुलता होने पर देवों के उपकरण-छत्र, चामर आदि अथवा आभूषण (पद्मावती देवी एवं धरणेन्द्र आदि रक्षक देवों के आभूषण) और त थ द ध न प फ ब भ म इन प्रश्नवर्गों के होने पर पक्षियों के आभूषणों की चिन्ता कहनी चाहिए। प्रश्नकर्ता के प्रश्नवाक्य में प्रथम वर्ण की मात्रा अ इ ए ओ इन चार मात्राओं में से कोई हो, तो जीवाभरण की चिन्ता; आ ई ऐ औ इन चार मात्राओं में से कोई मात्रा हो तो गृहाभरण की चिन्ता और उ ऊ अं अः इन चार मात्राओं में से कोई मात्रा हो तो सिक्के, नोट, रुपये आदि की चिन्ता समझनी चाहिए। प्रश्नवाक्य के आद्य वर्ण की मात्रा अ आ इन दोनों में से कोई हो तो शिरसाभरण की चिन्ता; इ ई इन दोनों में से कोई हो तो कर्णाभरण की चिन्ता, उ ऊ इन दोनों मात्राओं में से कोई हो तो नासिकाभरण की चिन्ता; ए मात्रा के होने से ग्रीवाभरण की चिन्ता; ऐ मात्रा के होने से कण्ठाभरण की चिन्ता; ऋ तथा संयुक्त व्यंजन में उकार की मात्रा होने से हस्ताभरण की चिन्ता; ओ औ इन मात्राओं
४६ : केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि