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________________ वर्गवाले अक्षर अक्षरोत्तर एवं पंचम वर्गवाले अक्षर दोनों-प्रथम और तृतीय मिला देने से क्रमशः वर्गोत्तर और वर्गाधर होते हैं। ___ क ग ङ च ज ञ ट ड ण त द न प ब म य ल श स ये उन्नीस वर्ण उत्तरसंज्ञक, ख घ छ झ ठ ढ थ ध फ भ र व ष ह ये चौदह वर्ण अधर संज्ञक, अ इ उ ए ओ अं ये छह वर्ण स्वरोत्तरसंज्ञक; अ च त य उ ज द ल ये आठ वर्ण गुणोत्तर संज्ञक और क ट प श ग ड व ह ये आठ वर्ण गुणाधर संज्ञक हैं। संयुक्त, असंयुक्त, अभिहत एवं अनभिहत आदि आठ प्रकार के प्रश्नों के साथ नौ प्रकार के इन प्रश्नों का भी विचार करना चाहिए। प्रश्नकर्ता के प्रथम, तृतीय और पंचम स्थान के वाक्याक्षर उत्तर एवं द्वितीय और चतुर्थ स्थान के वाक्याक्षर अधर कहलाते हैं। यदि प्रश्न में दीर्घाक्षर प्रथम, तृतीय और पंचम स्थान में हों तो लाभ करानेवाले होते हैं, शेष स्थानों में रहनेवाले ह्रस्व और प्लुताक्षर हानि करानेवाले होते हैं। साधक इन प्रश्नाक्षरों पर-से जीवन, मरण, लाभ, अलाभ, जय, पराजय आदि फलों को ज्ञात कर सकता है। इस प्रकार विभिन्न दृष्टिकोणों से आचार्य ने वाचिक प्रश्नों का विचार किया है। ज्योतिष शास्त्र में प्रश्न दो प्रकार के बताये हैं-मानसिक और वाचिक। वाचिक प्रश्न में प्रश्नकर्ता जिस बात को पूछना चाहता है, उसे ज्योतिषी के सामने प्रकट कर उसका फल ज्ञात करता है। परन्तु मानसिक प्रश्न में पृच्छक अपने मन की बात नहीं बतलाता है; केवल प्रतीकों फल, पुष्प, नदी, पहाड़, देवता आदि के नाम द्वारा ही ज्योतिषी को उसके मन की बात जानकर कहना पड़ता है। ___संसार में प्रधानतया तीन प्रकार के पदार्थ होते हैं-जीव, धातु और मूल। मानसिक प्रश्न भी उक्त तीन ही प्रकार के हो सकते हैं। आचार्य ने सुविधा के लिए इनका नाम तीन . प्रकार की योनि-जीव, धातु और मूल रखा है। अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ अं अः इन बारह स्वरों में से अ आ इ ए ओ अः ये छह स्वर तथा क ख ग घ च छ ज झट ठ ड ढ य श ह ये पन्द्रह व्यंजन इस प्रकार कुल २१ वर्ण जीव संज्ञक; उ ऊ अं ये तीन स्वर तथा त थ द ध प फ ब भ व स ये दस व्यंजन इस प्रकार कुल १३ वर्ण धातु संज्ञक और ई ऐ औ ये तीन स्वर तथा ङ ञ ण न म र ल ष ये आठ व्यंजन इस प्रकार कुल ११ वर्ण मूल संज्ञक होते हैं। जीवयोनि में अ ए क च ट त प य श ये अक्षर द्विपद संज्ञक; आ ऐ ख छ ठ थ फ र ष ये अक्षर चतुष्पद संज्ञक; इ ओ ग ज ड द ब ल स ये अक्षर अपद संज्ञक और ई औ घ झ ढ ध भ व ह ये अक्षर पादसंकुल संज्ञक होते हैं। द्विपद योनि के देव, मनुष्य, पशु यो पक्षी और राक्षस ये चार भेद हैं अ क ख ग घ ङ प्रश्न वर्गों के होने पर देवयोनि च छ ज झ ञ ट ठ ड ढ ण प्रश्न वर्गों के होने पर मनुष्य योनि; त थ द ध न प फ ब भ म के होने पर पशु या पक्षी योनि और य र ल व श ष स ह प्रश्नवर्गों के होने पर राक्षस योनि होती है। देवयोनि के चार भेद हैं-कल्पवासी, भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिषी। देवयोनि के वर्षों में अकार की मात्रा होने पर कल्पवासी, इकार की मात्रा होने ४४ : केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि
SR No.002323
Book TitleKevalgyan Prashna Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages226
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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