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________________ प्रश्नवाक्य 'चमेली' में प्रथम अक्षर 'च' है। यह अनभिहत प्रश्नवाक्य का है, अतः अनभिहत प्रश्न माना जाएगा। इसका फल कार्य-असिद्धि कहना चाहिए। प्रश्नश्रेणी के सभी वर्ण चतुर्थ वर्ग और प्रथम वर्ग के हों अथवा पंचम वर्ग और द्वितीय वर्ग के हों तो अभिघातित प्रश्न होता है। इस प्रश्न का फल अत्यन्त अनिष्टकर बताया गया है। यदि पृच्छक कमर, हाथ, पैर और छाती को खुजलाता हुआ प्रश्न करे तो भी अभिघातित प्रश्न होता है। प्रश्नवाक्य के प्रारम्भ में या समस्त प्रश्नवाक्य में अधिकांश स्वर अ इ ए औ ये चार हों तो आलिंगित प्रश्न, आ ई ऐ औ ये चार हों तो अभिधूमित प्रश्न और उ ऊ अं अः ये चार हों तो दग्ध प्रश्न होता है। आलिंगित प्रश्न होने पर कार्यसिद्धि, अभिधूमित होने पर धनलाभ, कार्यसिद्धि, मित्रागमन एवं यशलाभ और दग्ध प्रश्न होने पर दुःख, शोक, चिन्ता पीड़ा एवं धनहानि होती है। जब पृच्छक दाहिने हाथ से दाहिने अंग को खुजलाते हुए प्रश्न करे तो आलिंगित, दाहिने या बायें हाथ से समस्त शरीर को खुजलाते हुए प्रश्न करे तो अभिधूमित प्रश्न एवं रोते हुए नीचे की ओर दृष्टि किये हुए प्रश्न करे तो दग्ध होता है। प्रश्नाक्षरों के साथ-साथ उपर्युक्त चर्या-चेष्टा का भी विचार करना आवश्यक है। यदि प्रश्नाक्षर आलिंगित हों और पृच्छक की चेष्टा दग्ध प्रश्न की हो, ऐसी अवस्था में फल मिश्रित कहना चाहिए। प्रश्नवाक्य में अथवा प्रश्नवाक्य का आद्य स्वर आलिंगित होने पर तथा चेष्टा-चर्या के अभिधूमित या दग्ध होने पर प्रश्न का फल मिश्रित होगा, पर इस अवस्था में गणक को अपनी बुद्धि का विशेष उपयोग करना होगा। यदि प्रश्नाक्षरों में आलिंगित स्वरों की प्रधानता है, तो उसे निस्संकोच रूप से आलिंगित प्रश्न का फल कहना चाहिए, भले ही चर्या-चेष्टा अन्य प्रश्न की है। उदाहरण-किसी ने आकर पूछा 'मेरा कार्य सिद्ध होगा या नहीं?' इस प्रारम्भिक उच्चरित वाक्य को प्रश्नवाक्य मानकर विश्लेषण किया तो म् + ए + र् + आ + क् + आ + र् + य् + अ + स् + इ + द् + ध् + अ + ह + ओ + ग + आ यह स्वरूप हुआ। इसमें अ, अ, इ, ए, ओ, ये पाँच अक्षर स्वर आलिंगित और आ, आ, आ ये तीन अभिधूमित प्रश्न के हुए। “परस्परम् अक्षराशि शोधयित्वा योऽधिकः स एव प्रश्नः" इस नियम के अनुसार शोधन किया, तो आलिंगित प्रश्न के दो स्वर अवशेष आये-५ आलिंगित, ३ अभिधूमित=२ स्वर आलिंगित। अतः यह प्रश्न आलिंगित हुआ। यदि इस पृच्छक की चर्या-चेष्टा अभिधूमित प्रश्न की हो, तो मिश्रित फल होने पर भी आलिंगित प्रश्न का ही फल प्रधानरूप से कहना चाहिए। उपर्युक्त आठ प्रकार से प्रश्न का विचार करने के पश्चात् अधरोत्तर, वर्गोत्तर और वर्ग संयुक्त अधर इन भंगों के द्वारा भी प्रश्नों का विचार करना चाहिए। उत्तर के नौ भेद कह गये हैं-उत्तरोत्तर, उत्तराधर, अधराधर, वर्गोत्तर, अक्षरोत्तर, स्वरोत्तर, गुणोत्तर और आदेशोत्तर। अ और कवर्ग उत्तरोत्तर, चवर्ग और टवर्ग उत्तराधर, तवर्ग और पवर्ग अधरोत्तर एवं यवर्ग और शवर्ग अधराधर होते हैं। प्रथम और तृतीय वर्ग वाले अक्षर वर्गोत्तर, द्वितीय और चतुर्थ प्रस्तावना : ४३
SR No.002323
Book TitleKevalgyan Prashna Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages226
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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