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स्वप्नसम्बन्धी अनेक जैन आख्यानों से भी यही सिद्ध होता है कि स्वप्न मानव को उसके भावी जीवन में घटनेवाली घटनाओं की सूचना देते हैं। .
उपलब्ध जैन ज्योतिष में स्वप्नशास्त्र अपना विशेष स्थान रखता है। जहाँ जैनाचार्यों ने जीवन में घटनेवाली अनेक घटनाओं के इष्टानिष्ट कारणों का विश्लेषण किया है, वहाँ स्वप्न के द्वारा भावी जीवन की उन्नति और अवनति का विश्लेषण भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण ढंग से किया है। यों तो प्राचीन वैदिकं धर्मावलम्बी ज्योतिषशास्त्रियों ने भी इस विषय पर पर्याप्त लिखा है, पर जैनाचार्यों द्वारा प्रतिपादित स्वप्नशास्त्र में कई विशेषताएँ हैं। वैदिक ज्योतिषशास्त्रियों ने ईश्वर को सृष्टिकर्ता माना है, इसलिए स्वप्न को ईश्वरप्रेरित इच्छाओं का फल बताया है। वराहमिहिर, बृहस्पति और पौलस्त्य आदि विख्यात गणकों ने ईश्वर की प्रेरणा को ही स्वप्न में प्रधान कारण माना है। फलाफल के विवेचन में भी दस-पाँच स्थलों में भिन्नता मिलेगी। जैन स्वप्नशास्त्र में प्रधानतया सात प्रकार के स्वप्न बताये गये हैं-१. दृष्ट-जो कुछ जागृत अवस्था में देखा हो, उसी को स्वप्नावस्था में देखा जाए। २. श्रुत-सोने के पहले कभी किसी से सुना हो, उसी को स्वप्नावस्था में देखा जाए। ३. अनुभूत-जिसका जागत अवस्था में किसी भाँति अनभव किया हो. उसी को स्वप्न में देखें। ४. प्रार्थित-जिसकी जागृत अवस्था में प्रार्थना-इच्छा की हो, उसी को स्वप्न में देखें । ५. कल्पित-जिसकी जागृत अवस्था में कभी भी कल्पना की गयी हो, उसी को स्वप्न में देखें। ६. भाविक-जो कभी न देखा गया हो, न सुना गया हो पर जो भविष्य में होनेवाला हो, उसे स्वप्न में देखा जाए। ७. वात, पित्त और कफ इनके विकृत हो जाने से देखा जाए। इन सात प्रकार के स्वप्नों में से पहले के पाँच प्रकार के स्वप्न प्रायः निष्फल होते हैं। वस्तुतः भाविक स्वप्न का फल ही सत्य होता है।
निमित्त-इस शास्त्र में बाह्य निमित्तों को देखकर आगे होनेवाले इष्टानिष्ट का कथन किया जाता है; क्योंकि संसार में होनेवाले हानि-लाभ, सुख-दुःख, जीवन-मरण आदि सभी विषय कर्मों की गति पर अवलम्बित हैं। मानव जिस प्रकार के शुभाशुभ कर्मों का संचय करता है, उन्हीं के अनुसार उन्हें सुख-दुःख भोगना पड़ता है। बाह्य निमित्तों के द्वारा घटनेवाले कर्मों का आभास हो जाता है। इस शास्त्र में इन बाह्य निमित्तों का ही विस्तार के साथ विश्लेषण किया जाता है। जैनाचार्यों ने निमित्तशास्त्र के तीन भेद बतलाए हैं
जे दिट्ठ मुविरसण्ण जे दिवा कुहमेण कत्ताणं।
सदसंकुलेन दिट्ठा तय-सत्यिएण णाणधिया॥ अर्थात् पृथ्वी पर दिखाई देनेवाले निमित्तों के द्वारा फल का कथन करनेवाला निमित्त शास्त्र, आकाश में दिखाई देनेवाले निमित्तों के द्वारा फल प्रतिपादन करनेवाला निमित्तशास्त्र और शब्द श्रवण मात्र से फल का कथन करनेवाला निमित्त शास्त्र ये तीन निमित्त शास्त्र के प्रधान भेद हैं। आकाश सम्बन्धी निमित्तों का कथन करते हुए लिखा है कि
सूरोदय अत्थमणे चंदमसरिक्खमग्गहचरियं । तं पिच्छियं निमित्तं सव्वं आएसिहं कुणह॥
३० : केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि