SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 30
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अर्थात् रविवार को हस्त, पुनर्वसु, पुष्य, गुरुवार को उत्तरात्रय (उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रपद), पुष्य, सोमवार को मृगशिर, रोहिणी; मंगलवार को अश्विनी, रेवती; शुक्रवार को श्रवण, रेवती; शनिवार को विशाखा, कृत्तिका, रोहिणी, श्रवण और बुधवार को अनुराधा, शतभिषा नक्षत्र, अमृसिद्धि योग संज्ञक हैं । सामुद्रिक - जिस शास्त्र से मनुष्य के प्रत्येक अंग के शुभाशुभ का ज्ञान हो, उसे सामुद्रिकशास्त्र कहते हैं । हस्तसंजीवन में आचार्य मेघविजयगणि ने बताया है कि सब अंगों में हाथ श्रेष्ठ है, क्योंकि सभी कार्य हाथों द्वारा किये जाते हैं । इसीलिए पहले-पहल हाथ के लक्षणों का ही विचार इस शास्त्र में प्रधान रूप से रहता है । ' हाथ में जन्मपत्री की तरह ग्रहों का अवस्थान बताया है। तर्जनी मूल में बृहस्पति का स्थान, मध्यमा उँगली के मूल देश में शनि स्थान, अनामिका के मूलदेश में रवि स्थान, कनिष्ठा के मूलदेश में बुध स्थान तथा बृहद् अंगुष्ठ के मूल में शुक्रदेव का स्थान है । मंगल के दो स्थान बताये गये हैं । १. तर्जनी और बृहदंगुलि के बीच में पितृरेखा के समाप्ति स्थान के नीचे और २. बुध के स्थान के नीचे तथा चन्द्र के स्थान के ऊपर आयुरेखा और पितृरेखा के नीचेवाले स्थान में बताया गया है। रेखाओं के वर्ण का फल बतलाते हुए जैनाचार्यों ने लिखा है कि रेखाओं के रक्तवर्ण होने से मनुष्य आमोदप्रिय, सदाचारी और उग्र स्वभाव का होता है । यदि रक्तवर्ण में काली आभा मालूम पड़े तो प्रतिहिंसापरायण, शठ और क्रोधी होता है । जिसकी रेखा पीली होती है, पित्त के आधिक्यवश क्रुद्ध स्वभाव का, उच्चाभिलाषी, कार्यक्षम और प्रतिहिंसापरायण होता है। यदि उसकी रेखा पाण्डुक आभा की हो तो वह स्त्री स्वभाव का, दाता और उत्साही होता है। मेघविजयगणि ने भाग्यवान् के हाथ का लक्षण बतलाते हुए लिखा हैश्लाघ्य उष्णारुणोऽच्छिद्रोऽस्वेदः स्निग्धश्च श्लक्ष्णस्ताम्रनखो दीर्घाङ्गुलिको विपुलः मांसलः । करः ॥ अर्थात्- - गरम, लाल रंग, अँगुलियाँ अच्छिद्र-सटी हों, पसीना न हो, चिकना, मांस से भरा हो, चमकीला, ताम्रवर्ण के नखवाला तथा लम्बी और पतली अंगुलियों वाला M सर्वश्रेष्ठ होता है, ऐसा मनुष्य संसार में सर्वत्र सम्मान पाता है । इस शास्त्र में प्रधान रूप से आयुरेखा, मातृरेखा, पितृरेखा एवं समयनिर्णयरेखा, ऊर्ध्वरेखा, अन्तःकरण रेखा, स्त्रीरेखा, सन्तानरेखा, समुद्रयात्रारेखा या मणिबन्ध रेखा आदि रेखाओं का विचार किया जाता है। सभी ग्रहों के पर्वत के चिह्न भी सामुद्रिक शास्त्र में बतलाये गए हैं। इनके फल का विश्लेषण बहुत सुन्दर ढंग से जैनाचार्यों ने किया है। प्रश्न - इस शास्त्र में प्रश्नकर्ता से पहले किसी फल, नदी और पहाड़ का नाम पूछकर अर्थात् प्रातःकाल से लेकर मध्याह्न काल तक फल का नाम, मध्याह्नकाल से लेकर सन्ध्याकाल तक नदी का नाम और सन्ध्याकाल से लेकर रात के १०-११ बजे तक पहाड़ का नाम पूछकर तब प्रश्न का फल बताया गया है। जैनाचार्यों ने प्रश्न के फल का उत्तर १. सर्वाङ्गलक्षणप्रेक्षा-व्याकुलानां नृणां मुदे । श्रीसामुद्रेण मुनिना तेन हस्तः प्रकाशितः ॥ २८ : केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि
SR No.002323
Book TitleKevalgyan Prashna Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages226
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy