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में ग्रह न हों, तो इन स्थानों पर जितने ग्रहों की दृष्टि हो उसने अनुज और अग्रजों का अनुमान करना। स्वक्षेत्री ग्रहों के रहने तथा उन स्थानों पर अपने स्वामी की दृष्टि पड़ने से भ्रातृसंख्या में वृद्धि होती है। जितने ग्रह तृतीयेश के साथ हों, मंगल के साथ हों, तृतीयेश पर दृष्टि रखते हों और तृतीयस्थ हों, उतनी ही भ्रातृसंख्या होती है।
लग्नेश और तृतीयेश मित्र हों अथवा शुभ स्थानों में एक साथ हों तो भाइयों में प्रेम होता है।
विशेषफल-ततीयेश६१०।११वें भाव में बली होकर स्थित हो तो जातक असाधारण उन्नति करता है। सौदा, लाटरी, मुकद्दमा में विजय तृतीय भाव में क्रूर ग्रह के रहने पर मिलती
चतुर्थ भाव विचार-इससे मकान, पिता का सुख, मित्र आदि के सम्बन्ध में विचार करते हैं। इस स्थान पर शुभ ग्रहों की दृष्टि होने से या इस स्थान में शुभ ग्रहों के रहने से मकान का सुख होता है। चतुर्थेश पुरुष ग्रह बली हो तो पिता का पूर्ण सुख और निर्बल हो तो अल्पसुख तथा चतुर्थेश स्त्री ग्रह बली हो तो माता का पूर्ण सुख और निर्बल हो तो अल्प सुख होता है। चन्द्रमा बली हो तथा लग्नेश को जितने शुभग्रह देखते हों (किसी भी दृष्टि से), जातक के उतने ही मित्र होते हैं। चतुर्थ स्थान पर चन्द्र, बुध और शुक्र की दृष्टि हो तो बाग-बगीचा; चतुर्थ स्थान गुरु से युत या दृष्ट होने से मन्दिर; बुध से युत या दृष्ट होने पर रंगीन महल; मंगल से युत या दृष्ट होने से पक्का मकान और शनि से युत या दृष्ट होने से सीमेण्टेड मकान का सुख होता है।
विशेष योग-लग्नेश, चतुर्थेश और धनेश इन तीनों ग्रहों में से जितने ग्रह १।४।५।७।६।१० स्थानों में गये हों, उतने ही मकान जातक के होते हैं। उच्च, मूलत्रिकोण और स्वक्षेत्री में क्रमशः तिगुने, दूने और डेढ़ गुने समझने चाहिए।
विद्यायोग-चतुर्थ और पंचम इन दोनों के सम्बन्ध से विद्या का विचार किया जाता है तथा दशम स्थान से विद्याजनित यश का और उच्च परीक्षाओं में उत्तीर्णता प्राप्त करने
का विचार किया जाता है। ___ . १-यदि चतुर्थ स्थान में चतुर्थेश हो अथवा शुभ ग्रह की दृष्टि हो या वहाँ शुभग्रह स्थित हो तो जातक विद्या-विनयी होता है। २-चन्द्रलग्न एवं जन्लगग्न से पंचम स्थान का स्वामी बुध, गुरु और शुक्र के साथ १।४।५।७।६।१० स्थानों में से किसी में बैठा हो तो जातक विद्वान् होता है। बुध और गुरु एक साथ किसी भी भाव में हों तो विद्या का उत्तम योग होता है। ३-चतुर्थेश ६।८।१२वें भाव में हो या पापग्रह के साथ हो या पाप ग्रह से दृष्ट हो अथवा पापराशि गत हो तो विद्या का अभाव समझना चाहिए।
१. किसी भी प्रकार की दृष्टि-एक पाद, दो पाद आदि। २. ग्रहों के स्वरूप पर से पुरुष, स्त्री ग्रहों का परिज्ञान करना चाहिए। ३. यहाँ पूर्ण दृष्टि ली गयी है। ४. चन्द्रकुण्डली का लग्न। ५. जन्मकुण्डली का लग्न।
परिशिष्ट-२ : २०७