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________________ पंचम भाव विचार-पंचमेश शुभ ग्रह हो, शुभ ग्रहों के साथ हो, शुभ ग्रहों से घिरा-आगे के स्थान और पीछे के स्थान में शुभ ग्रह हों, बुध उच्च का हो, पंचम में बुध हो, या पंचम में गुरु हो, गुरु से पंचम भाव का स्वामी १।४।५।७।६।१०वें भाव में स्थित हो तो जातक विद्वान् होता है। सन्तान विचार-जन्म कुण्डली के पंचम स्थान से और चन्द्रकुण्डली के पंचम स्थान से सन्तान का विचार करना चाहिए। १-पंचम भाव, पंचमेश और गुरु शुभ ग्रह द्वारा दृष्टी या युत होने से सन्तान योग होता है। २-लग्नेश पाँचवें भाव में हो और गुरु बलवान हो तो सन्तान योग होता है। ३-बलवान गुरु लग्नेश द्वारा देखा जाता हो तो सन्तान योग प्रबल होता है। १।४।५।७।६।१०वें स्थानों के स्वामी शुभ ग्रहों और पंचम में स्थित हों तथा पंचमेश ६।८।१२वें भाव में न हो, पाप युक्त न हो तो सन्तानसुख पूर्ण होता है। ४-पंचम स्थान में वृष, कर्क और तुला में से कोई राशि हो, पंचम में शुक्र या चन्द्रमा स्थित हो अथवा इनकी कोई भी दृष्टि पंचम पर हो तो बहुपुत्र योग होता है। ५-लग्न अथवा चन्द्रमा से पंचम स्थान में शुभ ग्रह स्थित हो, पंचम भाव शुभ ग्रह से युत या दृष्ट हो तो सन्तान योग होता है। ६-लग्नेश और पंचमेश एक साथ हों या परस्पर एक-दूसरे को देखते हों तो सन्तानयोग होता है। ७-लग्नेश, पंचमेश शुभ ग्रह के साथ १।४।७।१० स्थानों में हों और द्वितीयेश बली हो तो सन्तानयोग होता है। -लग्नेश और नवमेश दोनों सप्तमस्थ हों अथवा द्वितीयेश लग्नस्थ हो तो सन्तानयाग होता है। स्त्री की कुण्डली में निम्न योगों के होने पर सन्तान नहीं होती है। १-सूर्य लग्न में और शनि सप्तम में। २-सूर्य और शनि सप्तम में, चन्द्रमा दशम भाव में स्थित हो तथा गुरु से दोनों ग्रह अदृष्ट हों। ३-षष्ठेश, रवि और शनि ये तीनों ग्रह षष्ठ स्थान में हों और चन्द्रमा सप्तम स्थान में हो तथा बुध से अदृष्ट हो। ४-शनि, मंगल छठे या चौथे स्थान में हों। १-६।८।१२ भावों के स्वामी पंचम में हों या पंचमेश ६।८।१२वें भावों में हो, पंचमेश नीच या अस्तंगत हो, तो स्त्री-पुरुष दोनों की कुण्डली में सन्तान का अभाव समझना चाहिए। २-पंचम भाव में धनु और मीन राशियों में से किसी का रहना या पंचम में गुरु का रहना सन्तान के लिए बाधक है। ३-पंचमेश, द्वितीयेश निर्बल हों और पंचम स्थान पर पाप ग्रह की दृष्टि हो तो सन्तान का अभाव होता है। पंचमेश जिस राशि में हो उससे ६।८।१२ भावों में पाप ग्रहों के रहने से सन्तान का अभाव होता है। सन्तान संख्या विचार-पंचम में जितने ग्रह हों और इस स्थान पर जितने ग्रहों की दृष्टि हो, उतनी सन्तान संख्या समझना। पुरुष ग्रहों के योग और दृष्टि से पुत्र और स्त्री ग्रहों के योग और दृष्टि से कन्या की संख्या का अनुमान करना। पंचमेश की किरण संख्या के तुल्य सन्तान जानना चाहिए। १. कोई भी दृष्टि हो। २. पूर्वोक्त छः प्रकार के बलों में से कम से कम दो बल जिसके हों। ३. सूर्य उच्च राशि का हो तो १०, चन्द्र हो तो ६, भौम हो तो ५, बुध हो तो ५, गुरु हो तो ७, शुक्र हो तो ८ और शनि हो तो पाँच किरणें होती हैं। उच्च बलका साधन का किरण संख्या निकालनी चाहिए। २०८ : केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि
SR No.002323
Book TitleKevalgyan Prashna Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages226
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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