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________________ दारिद्रय योग . १ षष्ठेश और धनेश ८ व्ययेश और पंचमेश १५ व्ययेश और दशमेश २ षष्ठेश और लग्नेश ६ व्ययेश और सप्तमेश १६ षष्ठेश और पंचमेश ३ षष्ठेश और चतुर्थेश १० षष्ठेश और भाग्येश १७ षष्ठेश और सप्तमेश ४ कर्मेश और चतुर्थेश ११ व्ययेश और भाग्येश १८ षष्ठेश और लाभेश ५ कर्मेश और धनेश १२ षष्ठेश और तृतीयेश १६ कर्मेश और लाभेश ६ व्ययेश और लग्नेश १३ व्ययेश और तृतीयेश २० कर्मेश और अष्टमेश ७ षष्ठेश और दशमेश १४ षष्ठेश और कर्मेश २१ षष्ठेश और व्ययेश धनयोग २।४।५७ भावों में हो तो पूर्णफल, ८।१२ में आधाफल, ६वें भाव में चतुर्थांश फल और शेष भावों में निष्फल होते हैं। दरिद्र योग धन स्थान में पूर्ण फल, व्यय स्थान में हो तो फल, दूसरे स्थान में अर्द्धफल और शेष स्थानों में निष्फल होते हैं। प्रत्येक व्यक्ति की जन्मपत्री में दोनों ही प्रकार के योग होते हैं। यदि विचार करने से धनी योगों की संख्या दरिद्र योगों की संख्या से अधिक हो तो व्यक्ति धनी और धनी योगों से दरिद्र योगों की संख्या अधिक हो तो व्यक्ति दरिद्री होता है। पूर्ण फल वाले दो धनी योगों के अधिक होने से सहस्राधिपति, तीन के अधिक होने पर लक्षाधिपति व्यक्ति होता है। अर्द्ध फल वाले योगों का फल आधा जानना चाहिए। - तृतीय भाव विचार-इस भाव से भाई और बहनों का विचार किया जाता है। परन्तु ग्यारहवें भाव से बड़े भाइयों और बड़ी बहनों का तथा तीसरे से छोटे भाइयों और छोटी बहनों का विचार होता है। मंगल भ्रातृकारक है, भातृ सुख के लिए निम्न योगों का विचार करना चाहिए। (क) तृतीय स्थान में शुभ ग्रह रहने से, (ख) तृतीय भाव पर शुभ ग्रह की दृष्टि होने से, (ग) तृतीयेश के बली होने से, (घ) तृतीय भाव के दोनों ओर-द्वितीय और चतुर्थ में शुभ ग्रहों के रहने से, (ङ) तृतीयेश पर ग्रहों की दृष्टि रहने से, (च) तृतीयेश के उच्च होने से और (छ) तृतीयेश के साथ शुभ ग्रहों के रहने से भाई-बहन का सुख होता है। तृतीयेश या मंगल के सम राशियों में रहने से कई भाई-बहनों का सुख होता है। यदि तृतीयेश और मंगल 12वें स्थान में हो, उस पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो या पापग्रह तृतीय में हों और उस पर पापग्रह की दृष्टि हो या तृतीयेश के आगे-पीछे पापग्रह हों या द्वितीय या चतुर्थ में पाप ग्रह हों तो भाई-बहन की मृत्यु होती है। तृतीयेश या मंगल ३।६।१२ भावों में हों और शुभ ग्रह से दृष्ट न हों तो भ्रातृ सुख नहीं होता। तृतीयेश राहु या केतु के साथ ६।८।१२वें भाव में हो तो भ्रातृसुख का अभाव होता है। एकादशेश पाप ग्रह हो या इस भाव में पाप ग्रह स्थित हो और शुभ ग्रह से दृष्ट न हो तो बड़े का सुख नहीं होता। भ्रातृसंख्या जानने के नियम-द्वितीय तथा तृतीय स्थान में जितने ग्रह रहें, उतने अनुज और एकादश तथा द्वादश स्थान में जितने ग्रह हों उतने बड़े भाई होते हैं। यदि इन स्थानों २०६ : केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि
SR No.002323
Book TitleKevalgyan Prashna Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages226
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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