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जन्मपत्री देखने की संक्षिप्त विधि जन्मपत्री में लग्न स्थान को प्रथम मान कर द्वादश स्थान होते हैं, जो भाव कहलाते हैं। इनके नाम ये हैं-तनु, धन, सहज, सुहृद्, पुत्र, शत्रु, कलत्र, आयु, धर्म, कर्म, आय और व्यय-इन बारह भावों में बारह राशियाँ और नवों ग्रह रहते हैं। ग्रह और राशियों के स्वरूप के अनुसार इन भावों का फल होता है।
राशियों के नाम-मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुम्भ, मीन।
राशियों के स्वामी या राशीश-मेष, वृश्चिक का स्वामी मंगल;, वृष, तुला का स्वामी शुक्र; मिथुन, कन्या का स्वामी बुध; कर्क का स्वामी चन्द्रमा; सिंह का स्वामी सूर्य धनु, मीन का स्वामी बृहस्पति और मकर, कुम्भ का स्वामी शनि होता है।
ग्रहों की उच्च राशियाँ-सूर्य मेष राशि में, चन्द्रमा वृष में, मंगल मकर में, बुध कन्या में, बृहस्पति कर्क में, शुक्र मीन में, शनि तुला में उच्च का होता है।
ग्रहों का शत्रुता-मित्रताबोधक चक्र ग्रह सूर्य चन्द्र मंगल बुध गुरु शुक्र शनि मित्र चन्द्र, मंगल रवि, बुध रवि, चन्द्र रवि, शुक्र चन्द्र, मंगल बुध, शनि शुक्र, बुध गुरु गुरु
रवि मंगल, गुरु
मंगल गुरु सम बुध शनि, शुक्र शुक्र, शनि शनि शनि मंगल, गुरु गुरु ।
शनि, शुक्र शत्रु शुक्र,शनि x बुध चन्द्र शुक्र, बुध रवि, चन्द्र रवि, चन्द्र
मंगल
ग्रहों का स्वरूप सूर्य-पूर्व दिशा का स्वामी, रक्तवर्ण, पुरुष, पित्तप्रकृति और पापग्रह है। सूर्य, आत्मा, राजभाव, आरोग्यता, राज्य और देवालय का सूचक तथा पितृकारक है। पिता के सम्बन्ध में सूर्य से विचार किया जाता है। नेत्र, कलेजा, स्नायु और मेरुदण्ड पर प्रभाव पड़ता है। लग्न से सप्तम में बली और मकर से ६ राशि पर्यन्त चेष्टाबली होता है।
चन्द्रमा-पश्चिमोत्तर दिशा का स्वामी, स्त्री, श्वेतवर्ण, वातश्लेष्मा प्रकृति और जल ग्रह है। यह माता, चित्तवृत्ति, शारीरिक पुष्टि, राजानुग्रह, सम्पत्ति और चतुर्थ स्थान का कारक है। चतुर्थ स्थान में बली और मकर से छः राशि में इसका चेष्टाबल होता है। सूर्य के साथ रहने से निष्फल होता है। नेत्र, मस्तिष्क, उदर और मूत्रस्थली का विचार चन्द्रमा से किया जाता है।
२०० : केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि