________________
मंगल-दक्षिण दिशा का स्वामी, पित्त प्रकृति, रक्तवर्ण, अग्नितत्त्व है। यह स्वभावतः पापग्रह है, धैर्य तथा पराक्रम का स्वामी है। तीसरे और छठे स्थान में बली और द्वितीय स्थान में निष्फल होता है। दसवें स्थान में दिग्बली और चन्द्रमा के साथ रहने से चेष्टाबली होता है।
बुध-उत्तर दिशा का, स्वामी, नपुंसक, त्रिदोष, श्यामवर्ण और पृथ्वी तत्त्व है। यह पापग्रहों-सूर्य, मंगल, शनि, राहु, केतु के, साथ रहने से अशुभ और शेष ग्रहों के साथ रहने से शुभ होता है। इससे जिहा, कण्ठ और तालु का विचार किया जाता है।
गुरु-पूर्वोत्तर दिशा का स्वामी, पुरुष और पीतवर्ण है। यह लग्न में बली और चन्द्रमा के साथ रहने से चेष्टाबली होता है। सन्तान और विद्या का विचार इससे होता है।
शुक्र-दक्षिण पूर्व का स्वामी, स्त्री और रक्तगौर वर्ण है। इसके प्रभाव से जातक का रंग गेहुआँ होता है। दिन में जन्म होने पर शुक्र से माता का भी विचार किया जाता है।
शनि-पश्चिम दिशा का स्वामी, नपुंसक, वातश्लेष्मिक प्रकृति और कृष्णवर्ण है। सप्तम स्थान में बली होता है, वक्र और चन्द्रमा के साथ रहे से चेष्टाबली होता है।
राहु-दक्षिण दिशा का स्वामी, कृष्णवर्ण और क्रूर ग्रह है। केतु-कृष्ण वर्ण और क्रूर ग्रह है। इससे चर्म रोग, हाथ, पाँव का विचार किया जाता
विशेष-यद्यपि बृहस्पति और शुक्र दोनों शुभ ग्रह हैं, पर शुक्र से सांसारिक और व्यावहारिक सुखों का तथा गुरु से पारलौकिक एवं आध्यात्मिक सुखों का विचार करते हैं। शुक्र के प्रभाव से व्यक्ति स्वार्थी और गुरु के प्रभाव से परमार्थी होता है।
शनि और मंगल दोनों ही पाप ग्रह हैं, पर शनि का अन्तिम परिणाम सुखद होता है, यह दुर्भाग्य और यन्त्रणा के फेर में डालकर व्यक्ति को शुद्ध कर देता है। परन्तु मंगल उत्तेजना देने वाला, उमंग और तृष्णा से परिपूर्ण कर देने के कारण सर्वदा दुःखदायक है।
ग्रहों के बलाबल का विचार . ग्रहों के छः प्रकार के बल बताये गये हैं-स्थानबल, दिग्बल, कालबल, नैसर्गिकबल, चेष्टाबल और दृग्बल। ___स्थानबल-जो ग्रह उच्च, स्वगृही, मित्रगृही, मूलत्रिकोणस्थ, स्वनवांशस्थ अथवा द्रेष्काणस्थ होता है, वह स्थान बली होता है।
दिग्बल-बुध और गुरु लग्न में रहने, शुक्र एवं चन्द्रमा चतुर्थ में रहने से, शनि सप्तम में रहने से एवं सूर्य और मंगल दशम स्थान में रहने से दिग्बली होते हैं।
कालबल-रात में जन्म होने पर चन्द्र, शनि और मंगल तथा दिन में जन्म होने पर सूर्य, बुध और शुक्र कालबली होते हैं।।
नैसर्गिक बल-शनि, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, चन्द्र व सूर्य उत्तरोत्तर बली होते हैं।
चेष्टाबल-मकर से मिथुन पर्यन्त किसी भी राशि में रहने से सूर्य और चन्द्रमा एवं चन्द्रमा के साथ रहने से मंगल, बुध गुरु, शुक्र और शनि चेष्टाबली होते हैं।
परिशिष्ट-२ : २०१