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विंशोत्तरीदशा और अन्तर्दशा का प्रयोजन
विंशोत्तरी महादशा और अन्तर्दशा की जन्मपत्री में बड़ी आवश्यकता रहती है इसके बिना कार्य के शुभाशुभ समय का ज्ञान नहीं हो सकता है। जैसे प्रस्तुत उदाहरण में जातक का जन्म चन्द्रमा की महादशा में हुआ है और यह संवत् २०१३ के मिथुन राशि के सूर्य के आठवें अंश तक रहेगी । चन्द्रमा की महादशा में प्रथम १ माह २३ दिन तक चन्द्रमा की ही अन्तर्दशा है। आगे चन्द्रमा की महादशा में मंगल, राहु, गुरु, शनि, बुध केतु, शुक्र और सूर्य की अन्तर्दशाएँ हैं । सूर्य के राशि अंश पंचांग में देखना चाहिए। दशा का फल विशेष रूप से जानना हो तो 'दशा फलदर्पण' नामक ग्रन्थ देखना चाहिए । सामान्य फल फलादेश प्रकरण में है ।
विंशोत्तरी दशा का फल
व्यक्ति के शुभाशुभ समय का परिज्ञान दशा से ही किया जाता है। जिस समय जिस ग्रह की दशा रहती है, उस सयम उसी के शुभाशुभानुसार व्यक्ति को फल मिलता है ।
दशाफल के नियम
लग्नेश की दशा में शारीरिक सुख और धनागम; धनेश की दशा में धनलाभ पर शारीरिक कष्ट होता है । यदि धनेश पाप ग्रह हो तो मृत्यु भी हो जाती है। तृतीयेश की दशा में रोग, चिन्ता और साधारण आमदनी; चतुर्थेश की दशा में मकान निर्माण, सवारी सुख, शारीरिक सुख, लाभेश और चतुर्थेश दोनों दशम या चतुर्थेश में हों, तो चतुर्थेश की दशा में मिल या बड़ा कारोबार, विद्यालाभ; पंचमेश की दशा में विद्या, धन, सन्तान, सम्मान, यश का लाभ और माता को कष्ट; षष्ठेश की दशा में शत्रुभय, रोगवृद्धि, सन्तान को कष्ट; सप्तमेश की दशा में स्त्री को पीड़ा; अष्टमेश की दशा में पाप ग्रह होने पर मृत्यु, अष्टमेश पाप ग्रह होकर द्वितीय में बैठा हो तो निश्चय मृत्युः नवमेश की दशा में सुख, भाग्योदय, तीर्थयात्रा, धर्मवृद्धि; दशमेश की दशा में राजाश्रय, सुखोदय, लाभ, सम्मान प्राप्ति; एकादशेश की दशा में धनागम, पिता की मृत्यु और द्वादशेश की दशा में धनहानि, शारीरिक कष्ट, मानसिक चिन्ताएँ होती हैं ।
अन्तर्दशा फल - पाप ग्रह की महादशा में पाप ग्रह की अन्तर्दशा धनहानि, कष्ट और शत्रुपीड़ाकारक होती है । २ - जिस ग्रह की महादशा हो उससे छठे या आठवें स्थान में स्थिर ग्रहों की अन्तर्दशा स्थानच्युति, भयानक रोग, मृत्युतुल्य कष्टदायक होती है । ३ - शुभ ग्रहों की महादशा में शुभ ग्रहों की अन्तर्दशा श्रेष्ठ, शुभ ग्रहों की महादशा में पाप ग्रहों की अन्तर्दशा हानिकारक होती है । ४ - शनि में चन्द्रमा और चन्द्रमा में शनि की अन्तर्दशा आर्थिक कष्टदायक होती है । ५- मंगल की अन्तर्दशा रोगकारक होती है । ६ - द्वितीयेश, तृतीयेश, षष्ठेश, अष्टमेश और द्वादशेश की अन्तर्दशा अशुभ होती है।
परिशिष्ट-२ : १६६