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है। कवि राजकुञ्जर की 'लीलावती' में क्षेत्र-व्यवहार सम्बन्धी अनेक विशेषताएँ बतायी गयी हैं। ग्यारहवीं शताब्दी का एक जैन गणित ग्रन्थ प्राकृत भाषा में लिखा मिलता है। इसमें मिश्रित प्रश्नों के उत्तर श्रेणी-व्यवहार और कुट्टक की रीति से दिये गये हैं। इसी काल में श्रीधराचार्य ने गणितशास्त्र नामक एक ग्रन्थ रचा है, इसमें ग्रहगणितोपयोगी आरम्भिक गणित सिद्धान्तों की चर्चा की गयी है। चौदहवीं शताब्दी के आस-पास के गणित ग्रन्थ तथा जैनेतर कई गणित ग्रन्थों के ऊपर टीकाएँ लिखी गयी हैं। इसी प्रकार अठारहवीं शताब्दी तक मौलिक एवं टीका ग्रन्थ गणित सम्बन्धी लिखे जाते रहे हैं।
जैन रेखागणित-जैनाचार्यों ने गणितशास्त्र के भिन्न-भिन्न अंगों पर लिखा है। रेखागणित के द्वारा उन्होंने विशेष-विशेष संस्थान या क्षेत्र के भिन्न-भिन्न अंशों का परस्पर सम्बन्ध बतलाया है। इसमें कोण, रेखा, समकोण, न्यूनकोण, समतल और घनपरिमाण आदि विषय का निरूपण किया गया है। जैनज्योतिष में समतल और घन रेखागणित, व्यवच्छेदक या बैजिक रेखागणित, चित्ररेखागणित और उच्चतर रेखागणित के रूप में मिलता है। समतल रेखागणित में सरल रेखा, समतल क्षेत्र, घन क्षेत्र और वृत्त के सामान्य विषय का जैनज्योतिर्विदों ने निरूपण किया है। उच्चतर रेखागणित में-सूचीछेद, वक्ररेखा और उसकी क्षेत्रावली का आलोचन किया है। चित्ररेखागणित में-सूर्यपरिलेख, चन्द्रपरिलेख एवं भौमादि ग्रहों के परिलेख तथा यन्त्रों द्वारा ग्रहों के वेध के चित्र दिखलाये गये हैं। ज्योतिषशास्त्र में इस रेखागणित का बड़ा भारी महत्त्व है। इसके द्वारा ग्रहण आदि का साधन बिना पाटीगणित की क्रिया के सरलतापूर्वक किया जा सकता है। व्यवच्छेदक रेखागणित या बैजिक रेखागणित में बीज सम्बन्धी क्रियाओं को रेखाओं द्वारा हल किया जाता है। जैनाचार्य श्रीधर ने सरल रेखा, वृत्त, रैखिक क्षेत्र, नलाकृति, मोचाकृति और वर्तुलाकृति आदि विषयों का वर्णन बैजिकरेखागणित में किया है। यों तो जैन ज्योतिष में स्वतन्त्र रूप से रेखागणित के सम्बन्ध में प्रायः गणित ग्रन्थ अनुपलब्ध हैं, परन्तु पाटीगणित के साथ या पञ्चांग निर्माण अथवा अन्य सैद्धान्तिक ज्योतिष ग्रन्थों के साथ में रेखागणित मिलता है।
'गणितसारसंग्रह' में त्रिभुजों के कई भेद बतलाये गये हैं तथा उनसे भुज, कोटि, कर्ण और क्षेत्रफल भी सिद्ध किये हैं। जात्य त्रिभुज के भुजकोटि, कर्ण और क्षेत्रफल लाने का निम्न प्रकार बताया है
. इस त्रिभुज में अ क, अ ग, भुज और कोटि हैं, क ग कर्ण है, ग अ क / समकोण है, अ समकोण बिन्दु से क ग कर्ण के ऊपर लम्ब किया है
१८ : केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि