________________
वैशाख मास के विशाखा और स्वाति; ज्येष्ठ मास के मूल, ज्येष्ठा और अनुराधा एवं आषाढ़ मास के उत्तराषाढ़ा और पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र बताये गये हैं। प्रत्येक मास की पूर्णमासी को उस मास का प्रथम नक्षत्र कुल संज्ञक, दूसरा उपकुल संज्ञक और तीसरा कुलोपकुल संज्ञक होता है। अर्थात् श्रावण मास की पूर्णिमा को धनिष्ठा पड़े तो कुल, श्रवण हो तो उपकुल और अभिजित् हो तो कुलोपकुल संज्ञावाला होता है। इसी प्रकार आगे-आगे के महीनों के नक्षत्र भी बताये गये हैं।
'ऋग्वेद संहिता' में ज्योतिषविषयक ऋतु, अयन, मास, पक्ष, नक्षत्र, तिथि आदि की जैसी चर्चा है, उसी प्रकार की प्राचीन परम्परा से चली आयी चर्चा इस ग्रन्थ में भी मौजूद है।
_ 'समवायांग' में आर्द्रा, चित्रा और स्वाति नक्षत्र की एक-एक तारा; पूर्वाफाल्गुनी उत्तराफाल्गुनी, पूर्वाभाद्रपद और उत्तराभाद्रपद की दो-दो ताराएँ; मृगशिरा, पुष्य, ज्येष्ठा, अभिजित्, श्रवण, अश्विनी और भरणी नक्षत्र की तीन-तीन ताराएँ, अनुराधा, पूर्वाषाढ़ा और उत्तराषाढ़ा की चार-चार ताराएँ; रोहिणी, पुनर्वसु, हस्त, विशाखा और धनिष्ठा नक्षत्र की पाँच-पाँच ताराएँ; कृत्तिका और आश्लेषा की छह-छह ताराएँ एवं मघा नक्षत्र की सात ताराएँ बतायी गयी हैं। कृत्तिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य और आश्लेषा ये सात नक्षत्र पूर्वद्वार वाले; मघा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा ये सात दक्षिणद्वार वाले; अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, अभिजित्, श्रवण ये सात पश्चिमद्वार वाले एवं धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद, रेवती, अश्विनी और भरणी ये सात नक्षत्र उत्तरद्वार वाले हैं। इस प्रकार प्राचीन ग्रन्थों में नक्षत्रों का विस्तृत विचार किया गया है।
___फुटकर ज्योतिष चर्चा के अलावा सूर्यप्रज्ञप्ति, चन्द्रप्रज्ञप्ति, ज्योतिष्करण्डक, अंगविज्जा, गणिविज्जा, मण्डलप्रवेश, गणितसारसंग्रह, गणितसूत्र, व्यवहारगणित, जैन गणितसूत्र, सिद्धान्तशिरोमणि-त्रैवेद्य मुनि, गणितशास्त्र, गणितसार, जोइसार, पंचाङ्गानयनविधि, इष्टतिथिसारिणी, लोकविजययन्त्र, पंचाङ्गतत्त्व, केवलज्ञानहोरा, आयज्ञानतिलक, आयसद्भाव प्रकरण, रिट्ठसमुच्चय, अर्घकाण्ड, ज्योतिषप्रकाश, जातकतिलक, नक्षत्रचूड़ामणि आदि सैकड़ों ग्रन्थ हैं।
विषयविचार की दृष्टि से जैन ज्योतिष को प्रधानतः दो भागों में विभक्त किया जा सकता है। एक गणित और दूसरा फलित। गणितज्योतिष-सैद्धान्तिक दृष्टि से गणित का महत्त्वपूर्ण स्थान है; ग्रहों की गति, स्थिति, वक्री, मार्गी, मध्यफल, मन्दफल, सूक्ष्मफल, कुज्या, त्रिज्या, बाण, चाप, व्यास, परिधिफल एवं केन्द्रफल आदि का प्रतिपादन बिना गणित ज्योतिष के नहीं हो सकता है। आकाशमण्डल में विकीर्णित तारिकाओं का ग्रहों के साथ कब कैसा १. “अद्धाणक्खत्ते एगतारे। चित्ताणक्खत्ते एगतारे। सातिणक्खत्ते एगतारे। पुव्वाफग्गुणीणक्खत्ते दुतारे। __उत्तरा-फग्गुणीणक्खत्ते दुतारे। पुव्वभद्दवयाणक्खत्ते दुतारे। उत्तराभद्दवयाणक्खत्ते दुतारे..."-समवायाङ्ग १६,
२४, ३।२, ४।३, ५६, ६७ २. “कत्तिआइया सत्तणक्खत्ता पुव्वदारिआ। महाइआ सत्तणक्खत्ता दाहिणदारिआ। अणुराइआ सत्त णक्खत्ता
अवरदारिआ। धणिद्धाइआ सत्तणक्खत्ता उत्तरदारिआ।"-समवायाङ्ग ७५
प्रस्तावना : १५