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दिक्चक्र में देखकर उस अंक से प्रश्नाक्षर संख्या को गुणा कर तीन से भाग देना चाहिए। एक शेष में जीवचिन्ता; दो में धातुचिन्ता और शून्य शेष में मूलचिन्ता समझनी चाहिए। पुनः लब्ध को पिण्ड में मिलाकर दो से भाग देना चाहिए। एक शेष में सुखदायक और शून्य या दो शेष में दुःखदायक समझना चाहिए।
सिंहावलोकन दिक्चक्र सिंहावलोकन स्वर व्यंजनाङ्क चक्र
| अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ अं अः। ई श पू. अ. | अ. क. २१ । २८ । २७ ।
१ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ १० ११ १२
| क ख ग घ ङ च छ ज झ ञ ट ठ उ.य.
च. २६
।। १ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ १० ११ १२ २२
| ड ढ ण त थ द ध न प फ ब भ वाय.प.
| १३ १४ १५ १६ १७ १८ १९ २० २१ २२ २३ २४ २३
| म य र ल व श ष स ह ० ० ०. .
२५ २६ २७ २८ २९ ३० ३१ ३२ ३३ ० ० ०
।त. २४
प.
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उदाहरण-पृच्छक का प्रश्नवाक्य 'कैलास पर्वत' है। यहाँ प्रश्नवाक्य 'क' उत्तराक्षर से प्रारम्भ होता है, अतः प्रश्नवाक्य का विश्लेषण किया तो क् + ऐ + ल् + आ + स् + अ + प् + अ + र् + व् + अ + त् + अ = ऐ + आ + अ + अ + अ + अ स्वर; क् + ल् + स् + + इ + व् + त् व्यंजन-सिंहावलोकन के अंक चक्रानुसार मात्रांक-८ + २ + १ + १ + १ + १%3 १४, व्यंजनांक = १+ २८ + ३२ + २१ + २७ + २६ + १६ = १५४। १४ x ११ = १५४ + १५४ = ३०८ + १० = ३१८ * ८ = ३६ लब्धि, ६ शेष रहा। अतः यवर्ग का प्रश्न माना जायगा।
२-गजावलोकन चक्र-अकारादि बारह स्वरों के चार को आदि कर यथाक्रम से अंक जानना, क वर्ग का पाँच आदि कर, च वर्ग का छः आदि कर, ट वर्ग का सात आदि कर, त वर्ग का आठ आदि कर, प वर्ग का नौ आदि कर और य वर्ग का दस आदि कर अंक संख्या लिख लेनी चाहिए। संयुक्तवेला में पृच्छक जिस दिशा में मुख करके बैठा हो, उसके पीछे की दिशा का अंक दिक्चक्र में देखकर लिख लेना चाहिए। पश्चात् प्रश्नाक्षर संख्या से गुणा कर तीन का भाग देना चाहिए। एक शेष में जीवचिन्ता, दो शेष में धातुचिन्ता और शून्य शेष में मूलचिन्ता कहनी चाहिए। पुनः लब्धि को पिण्ड में मिलाकर दो से भाग देना चाहिए तथा एक शेष में लाभ और शून्य शेष में अलाभ फल होता है। पश्चात् फिर से लब्धि को पिण्ड में जोड़कर दो का भाग देने से एक शेष में सुख और शून्य शेष में दुःख फल होता है।
केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि : १५१