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________________ प्राप्नोति। अमोहितक्रमेण चवर्गे दग्धे पवर्ग प्राप्नोति। गजविलोकितक्रमेण चवर्गमालिङ्गिते उत्तराक्षरे उत्तरस्वरसंयुक्तेऽवर्ग प्राप्नोति। सिंहदृशानुक्रमेण' चवर्गे दग्धे अवर्गो मेकप्लुत्या प्राप्नोति। इति 'चवर्गपञ्चाधिकारः। ___ अर्थ-गर्गाचार्य द्वारा कहे गये वर्गानयन के नियम को बताते हैं। आलिंगित उत्तराक्षराक्षर उत्तर स्वर संयुक्त होने पर प्रश्न का चवर्ग यवर्ग को प्राप्त हो जाता है। सिंहावलोकन क्रम से चवर्ग के अभिधातित होने पर प्रश्न का चवर्ग कवर्गको प्राप्त हो जाता है। मण्डूकप्लवनक्रम से चवर्ग के अभिधूमित होने पर प्रश्न का चवर्ग पवर्ग को प्राप्त होता है। अश्वमोहित क्रम से चवर्ग के दग्ध होने पर प्रश्न का चवर्ग पवर्ग को प्राप्त हो जाता है। गजविलोकन क्रम से आलिंगित में उत्तरस्वर संयुक्त उत्तराक्षर प्रश्न वर्गों के होने पर चवर्ग अवर्ग को प्राप्त हो जाता है। सिंहदृष्टि अनुक्रम से चवर्ग के दग्ध होने पर भेकप्लवन । सिद्धान्त द्वारा चवर्ग अवर्ग को प्राप्त हो जाता है। इस प्रकार प्रश्न का चवर्ग पाँचों वर्गों को प्राप्त होता है। तात्पर्य यह है कि प्रश्न का प्रत्येक वर्ग विशेष-विशेष नियमों के द्वारा पाँचों वर्गों को प्राप्त हो जाता है। इस प्रकार चवर्ग का पञ्चवर्गाधिकार पूर्ण हुआ। विवेचन-आचार्य ने मूकप्रश्न, मुष्टिका प्रश्न, लूकाप्रश्न आदि के लिए उपयोगी वर्णनिष्कासन का नियम ऊपर गर्गाचार्य द्वारा प्रतिपादित लिखा है। इस नियम का भाव यह है कि मन में चिन्तित या मुट्ठी की वस्तु का नाम किस वर्ग के अक्षरों का है। यह निश्चित है कि प्रश्नाक्षर जिस वर्ग के होते हैं, वस्तु का नाम उस वर्ग के अक्षर पर नहीं होता है। प्रत्येक प्रश्न में सिंहावलोकन, गजावलोकन, नन्द्यावर्त, मण्डूकप्लवन, अश्वमोहितक्रम ये पाँच प्रकार के सिद्धान्त वर्गाक्षरों के परिवर्तन में काम करते हैं। चन्द्रोन्मीलन प्रश्नशास्त्र में आठ प्रकार के परिवर्तन सम्बन्धी सिद्धान्तों का निरूपण किया है। यहाँ उपर्युक्त पाँचों सिद्धान्तों का स्वरूप दिया जाता है। १-सिंहावलोकन क्रम-अकारादि बारह स्वरों के अंक-स्थापन कर तथा ककारादि तैंतीस व्यंजनों के अंक स्थापित कर चक्र बना लेना। पश्चात् अधर प्रश्न हो तो आधवर्ण की व्यंजन संख्या को ५ से गुणा कर मात्रांक संख्या में जोड़ दें और योगफल में आठ का भाग लेने पर एकादि शेष में अवर्ग, कवर्ग, चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग, पवर्ग, यवर्ग और शवर्ग समझना चाहिए। यदि उत्तर प्रश्न हो तो मात्रांक संख्या को ११ से गुणा कर व्यंजन संख्या में जोड़ दें और उसमें १० और जोड़कर आठ से भाग दें तथा एकादि शेष में अवर्गादि ज्ञात करें। संयुक्त वेला में पृच्छक जिस दिशा में मुख करके बैठे, उसके पीछे की दिशा का अंक १. अनुक्रमेण इति पाठे नास्ति-क. मू.। २. प्राप्नोति-इति पाठो नास्ति- क. मू.। ३. बृ. ज्यो ४। २८३, २८६-८८ । १५० : केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि
SR No.002323
Book TitleKevalgyan Prashna Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages226
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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