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भाव में हो तो कुष्ठ और राहु युक्त रवि अष्टम भाव में हो, तो महाकष्ट होता है।
यदि लग्नेश निर्बल हो, अष्टमेश बलवान हो, और चन्द्रमा छठे या आठवें स्थान में हो तो रोगी की मृत्यु होती है। लग्नेश यदि उदित हो और अष्टमेश दुर्बल हो एवं एकादश बलवान हो तो रोगी चिरंजीवी होता है। यदि प्रश्नकुण्डली के अष्टम स्थान में राहु हो, तो भूत, पिशाच, जादू-टोना, नजर आदि से रोग उत्पन्न होता है। शनि लग्न या अष्टम स्थान में हो, तो केवल भूत, पिशाच से रोग उत्पन्न होता है।
प्रश्नलग्न में क्रूर ग्रह हों तो आयुर्वेद के इलाज से रोग दूर नहीं होता है; बल्कि जैसे-जैसे उपचार किया जाता है, वैसे-वैसे रोग बढ़ता है। यदि प्रश्नलग्न में बलवान शुभ ग्रह हों तो इलाज से रोग जल्द दूर होता है। प्रश्नकुण्डली के सातवें भाव में पाप ग्रह हों तो वैद्यक के इलाज से हानि और शुभ ग्रह हों तो डॉक्टरी इलाज से लाभ समझना चाहिए। प्रश्नलग्न से दसवें भाव में शुभ ग्रह हों तो इलाज, पथ्य आदि उपचारों से रोगनिवृत्ति एवं अशुभ ग्रह हों तो उपचार आदि से रोगवृद्धि अवगत करनी चाहिए। शुभ ग्रह के साथ अथवा लग्नस्वामी के साथ चन्द्रमा इत्थशाल' योग करता हो और शुभ ग्रहों से युक्त होकर केन्द्र में स्थित हो, तो रोगी का रोग जल्द अच्छा होता है। केन्द्र में लग्नेश या चन्द्रमा हो और ये दोनों शुभ ग्रहों से युक्त और दृष्ट हों, तो शीघ्र रोगनिवृत्ति और पाप ग्रहों से युक्त या दृष्ट हों, तो विलम्ब से रोगनिवृत्ति होती है। प्रश्नलग्न चर या द्विस्वभाव हो, लग्नेश और चन्द्रमा शुभ ग्रहों से युक्त होकर अपनी राशि या १। ४। १० भावों में स्थित हों, तो जल्द रोग दूर होता है। लग्न में कोई ग्रह वक्री हो तो रोग यत्न करने पर दूर होता है, लग्न में अष्टमेश हो तथा चन्द्रमा और लग्नेश आठवें भाव में हों, तो रोगी की मृत्यु कहनी चाहिए। लग्नेश और अष्टमेश का इत्थशाल योग हो या ये ग्रह पाप ग्रहों से देखे जाते हों, तो रोगी की मृत्यु होती है। लग्नेश चतुर्थ भाव में न हो, चन्द्रमा छठे भाव में हो और चन्द्रमा सप्तमेश के साथ इत्थशाल योग करता हो अथवा सप्तमेश छठे घर में हो, तो निश्चय से रोगी मृत्यु होती है। लग्नेश और चन्द्रमा का अशुभ ग्रह के साथ इत्यशाल हो या लग्नेश और चन्द्रमा ४।८ । ६ में स्थित हों एवं पाप ग्रहों से युक्त या दृष्ट हों, तो रोगनाशक; ६।८।१० इन भावों में पाप ग्रह हों और चन्द्रमा अष्टम स्थान में स्थित हो, तो रोगी की मृत्यु होती है। लग्न, सप्तम और अष्टम इन स्थानों में पाप ग्रह हो और शुभ ग्रह निर्बल हों; चन्द्रमा चतुर्थ, अष्टम स्थान में हो एवं चन्द्रमा के पास के दोनों स्थानों में पाप ग्रह हों, तो रोगी की मृत्यु होती है।
चवर्ग पञ्चाधिकार । गर्गः-आलिङ्गितेषूत्तराक्षरेषूत्तरस्वरसंयुक्तेषु यवर्ग प्राप्नोति। सिंहावलोकनक्रमेणावर्गे (क्रमेण चवर्ग)ऽभिघातिते कवर्ग प्राप्नोति।' मण्डूकप्लवनक्रमेण 'कवर्गेऽभिधूमिते पवर्ग
१. ता. नी. पृ. ६५। २. चवर्गेऽभिधूमिते पवर्गं प्राप्नोति-क. मू.।
केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि : १४६