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________________ के बाद ५६, ४६ या ६६ वर्ष आयु कहनी चाहिए। यदि किसी का प्रश्न ऐसा हो कि मेरी कुल आयु कितनी है, तो प्रश्नाक्षरों की व्यंजन संख्या और स्वर संख्या को परस्पर गुणाकर २ का भाग देने पर आयु के वर्ष आते हैं। रोगी व्यक्ति की रोगावधि पूर्वोक्त समय अवधि के नियमों से भी निकाली जा सकती है। तथा निम्न गणित नियमों से प्रश्नाक्षरों पर-से रोग-आरोग्य का निश्चय कर सकते हैं। १-प्रश्नश्रेणी की वर्ण और मात्रा संख्या को जोड़कर, जो योगफल आए उसमें एक और जोड़ना चाहिए, इस योग को दो से गुणाकर तीन का भाग दें, एक शेष में रोगिनिवृत्ति, दो शेष में व्याधिवृद्धि और शून्य शेष में मरण कहना चाहिए। जैसे रामदास की प्रश्नवर्णसंख्या ८ है। अतः ८ + १ = ६ x २ = १८ + ३ = ६ लब्धि, शेष ०, अतः मरण फल हुआ। २-प्रश्नश्रेणी की अभिधूमित और आलिंगित मात्राओं की संख्या का परस्पर गुणा कर, इन गुणनफल में दग्ध मात्राओं की संख्या जोड़ देनी चाहिए। फिर योगफल को तीन से गुणा कर चार से विभाजित करना चाहिए। एक शेष में रोगनिवृत्ति, दो शेष में रोगवृद्धि, तीन शेष में मृत्यु और शून्य शेष में कुछ दिनों तक कष्ट पाने के पश्चात् रोग दूर होता है। ३-पूर्वोक्त समयावधि सूचक अंक संख्या के अनुसार स्वर और व्यंजनों की संख्या पृथक्-पृथक् लाकर दोनों को जोड़ देना चाहिए। इस योगफल में पृच्छक के नामाक्षरों को तिगुना कर जोड़ दें, पश्चात् आगत योगफल में पाँच का भाग दें। एक शेष में विलम्ब से रोगनिवृत्ति; दो शेष में जल्दी रोगनिवृत्ति, तीन शेष में मृत्युतुल्य कष्ट, चार शेष में मृत्यु या तत्तुल्य कष्ट और शून्य शेष में मृत्यु फल होता है। ___प्रश्नकुण्डलीवाले सिद्धान्त के अनुसार प्रश्नलग्न में पाप ग्रहों-सूर्य, मंगल, शनि और क्षीण चन्द्रमा की राशि हो और अष्टम भाव पाप ग्रह से युक्त या दृष्ट हो तथा दो पाप ग्रहों के मध्यवर्ती या पाप ग्रहों से युक्त चन्द्रमा अष्टम भाव में हो तो रोगी का शीघ्र मरण होता है। यदि प्रश्नकुण्डली में सभी पाप ग्रह लग्न से १२वें स्थान में हों और चन्द्रमा अष्टम स्थान में हो अथवा पापग्रह सप्तम भाव में हों और चन्द्रमा लग्न में हो या पापग्रह अष्टम भाव में हों और चन्द्रमा छठे स्थान में हो, तो रोगी का शीघ्र मरण होता है। चन्द्रमा लग्न में हो और सूर्य सप्तम में हो, तो रोगी का मरण शीघ्र होता है। चन्द्रयुक्त मंगल मेष या वृश्चिक राशि के २३ अंश से लेकर २७ अंश तक स्थित हो, तो रोगी का निश्चय मरण होता है। यदि प्रश्न-लग्न से सप्तम भाव शुभग्रह युक्त हो, तो रोगी को शुभ और पापग्रह युक्त हो तो रोगी को अशुभ होता है। यदि सप्तम भाव में शुभ और अशुभ दोनों ही प्रकार के ग्रह मिश्रित हों, तो कुछ समय तक बीमारी का कष्ट होने के बाद रोगी अच्छा हो जाता है। प्रश्नकुण्डली के अष्टम भाव में यदि सूर्य या मंगल हो, तो रोगी को रक्त और पित्तजनित रोग होता है। यदि अष्टम में बुध हो, तो सन्निपात रोग होता है। यदि राहु युक्त रवि षष्ठ १. प्र. भू. वि. पृ. ५३-५४। १४८ : केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि
SR No.002323
Book TitleKevalgyan Prashna Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages226
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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