SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 148
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 'समयावधि' के प्रकरणों में काफी लिखा जा चुका है। यहाँ पर प्रश्नलग्नवाले सिद्धान्त का ही प्रतिपादन किया जाता है 'भुवनदीपक' नामक ग्रन्थ में आचार्य पद्मप्रभसूरि ने लाभालाभ का रहस्य बतलाते हुए लिखा है कि प्रथम लग्न का स्वामी लेनेवाला और ग्यारहवें स्थान का स्वामी देनेवाला होता है। जब प्रश्नकुण्डली में लग्नेश और एकादशेश दोनों ग्रह एक साथ हों तथा चन्द्रमा ग्याहवें स्थान को देखता हो तो लाभ का पूर्ण योग समझना चाहिए। उपर्युक्त दोनों स्थान-लग्न और एकादश तथा उक्त दोनों स्थान के स्वामी-लग्नेश और एकादशेश इन चारों की विभिन्न परिस्थितियों से लाभालाभ का निरूपण करना चाहिए। लग्नेश, चन्द्रमा और द्वितीयेश ये तीनों एक साथ १।२५।इन स्थानों में प्रश्नकुण्डली में हों तो शीघ्र सहस्रों रुपयों का लाभ पृच्छक को होता है। चन्द्रमा, बुध, गुरु और शुक्र पूर्ण बली हों ।। ११ । ६।५।१।४।७। १० इन स्थानों में स्थित हों या अपनी उच्च राशि को प्राप्त हों और पाप ग्रहरहित हों तो पृच्छक को शीघ्र ही बहुत लाभ होता है। शुक्र अपनी उच्च राशि पर स्थित हुआ लग्न में बैठा हो या चौथे अथवा पाँचवें भाव में बैठा हो और शुभ ग्रहों से दृष्ट या युत हो, तो गाँव, नगर, मकान और पृथ्वी आदि का लाभ होता है। यदि लग्न का स्वामी अपनी उच्च राशि पर हो या लग्न स्थान में हो और 'कर्म-दसवें स्थान का स्वामी लग्न को देखता हो, तो पृच्छक को राजा से धन लाभ होता है। यदि कर्म-दसवें भाव का स्वामी पाप ग्रहों के द्वारा देखा जाय तो, स्वल्पलाभ राजा से होता है। चन्द्रमा, लग्नेश और द्वितीयेश इन तीनों का कबूल योग हो, तो प्रचुर धन का लाभ होता है। धन स्थान-द्वितीय भाव का स्वामी अपने घर या उच्च राशि में बैठा हो तो प्रचुर द्रव्य का लाभ होता है। धनेश शत्रुराशि या नीच राशि में स्थित हो, तो लाभाभाव समझना चाहिए। यदि प्रश्नकुण्डली में लग्न का स्वामी लग्न में धन का स्वामी धन स्थान में और लाभेश लाभ स्थान में हो, तो रत्न, सोना, चाँदी और आभूषणों का लाभ होता है। लग्नेश अपनी उच्च राशि का हो या लग्न स्थान में हो तथा लग्नेश भी लग्न स्थान में हो अथवा लग्नेश और लाभेश दोनों लाभ स्थान में हों, तो पृच्छक को द्रव्य का लाभ करानेवाला योग होता है। लग्नेश और धनेश लग्न स्थान में हों, बृहस्पति को चन्द्रमा देखता हो तथा बृहस्पति बली हो, तो पूछनेवाले व्यक्ति को अधिक लाभ करनेवाला योग समझना चाहिए। धनेश और बृहस्पति ये दोनों शुक्र और बुध से युक्त हों, तो अधिक धन मिलता है। गुरु, बुध और शुक्र ये तीनों प्रश्नकुण्डली में नीच के हों तथा पाप ग्रहों से युत या दृष्ट हों तथा १।२।५।६। १० इन स्थानों को छोड़कर अन्य स्थानों में ये ग्रह स्थित हों, तो धन का नाश होता है। इस प्रकार के प्रश्नवाला व्यक्ति व्यापार में अपरिमित धन १. भु., दी. श्लो ८०-८१ २. प्रः वै पृ. १३-१४। ३. लग्नेश और कार्येश इन दोनों का इत्यशाल हो तथा इन दोनों में से किसी एक के साथ चन्द्रमा इत्यशाल __ करता हो तो कम्बूल योग होता है-ता. नी. पृ. ७६ । १४६ : केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि
SR No.002323
Book TitleKevalgyan Prashna Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages226
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy