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लौट आता है। यदि बलवान ग्रह चर राशि में स्थित हों, तो एक महीने में, स्थिर राशि में हों, तो तीन महीने में और द्विस्वभाव राशि में स्थित हों, तो दो महीने में प्रवासी वापस आता है। लग्न से जितनी दूर पर हो, उतने ही दिनों में लौटने का दिन कहना चाहिए।
लाभालाभ प्रश्न विचार अथ लामालाममाह-प्रश्ने सङ्कट विकटमात्रासंयुक्तोत्तराक्षरेषु बहुलाभः। विकटमात्रासंयुक्तोत्तराक्षरेष्वल्पलामः। सङ्कटमात्रासंयुक्तोत्तराक्षरेष्वल्पलामः, कष्टसाध्यश्च । जीवाक्षरेषु जीवलामो धातुलाभश्च । मूलाक्षरेषु मूललाभः। इति पूर्वं कथयित्वा पुनः संख्यां विनिर्दिशेत्।
अर्थ-अथ लाभालाभ का विचार करते हैं। प्रश्न में संकटविकट मात्राओं से युक्त' संयुक्त उत्तराक्षर हों तो बहुत लाभ होता है। विकट मात्रा-आ इ ऐ औ मात्राओं से संयुक्त उत्तराक्षर- क ग ङ च ज ञ ट ड ण त द न प ब म य ल श स हों तो इस प्रकार के प्रश्न में पृच्छक को अल्प लाभ होता है। संकट-अ इ ए ओ मात्राओं से संयुक्त उत्तराक्षर प्रश्न के हों तों अल्प लाभ और कष्ट से उसकी प्राप्ति होती है। जीवाक्षर प्रश्नाक्षर- अ आ इ ए ओ अः क ख ग घ च छ ज झ ट ठ ड ढ य श ह हों तो जीवलाभ और धातुलाभ होता है। मूलाक्षर-ई ऐ औ ङ ञ ण न म ल र ष प्रश्नाक्षर हों तो मूल लाभ होता है। इस प्रकार पहले जीव, मूल और धातु का लाभ कहकर लाभ की संख्या निश्चित करनी चाहिए। संख्या लाने की प्रक्रिया समयावधि की विधि के अनुसार ज्ञात करनी चाहिए। तात्पर्य यह है कि उ ऊ अं अः इन मात्राओं से संयुक्त क ग च ज ट ड त द न प ब म य ल श वर्गों में से कोई भी वर्ण आद्य प्रश्नाक्षर हो तो पृच्छक को अत्यधिक लाभ होता है। आ ई ऐ औ इन मात्राओं से संयुक्त पूर्वोक्त अक्षरों में से कोई अक्षर आध प्रश्नाक्षर हो तो अल्पलाभ एवं अ इ ए ओ इन मात्राओं से संयुक्त पूर्व वर्गों में से कोई वर्ण आद्य प्रश्नाक्षर हो तो पृच्छक को कष्ट से अल्पलाभ होता है।
विवेचन- लाभालाभ के प्रश्न का विचार ज्योतिषशास्त्र में दो प्रकार से किया है-प्रथम प्रश्नाक्षर पर-से और द्वितीय प्रश्नलग्न से। प्रश्नाक्षरवाले सिद्धान्त के सम्बन्ध में
१. सररिउ सद्ददिवाअर सराइ वग्गाण पंचमा वण्णा। डड्ढा वियड संकड अहराहर असुह णामाई। उ ऊ अं
अः एते पंचमषष्ठिका एकादशमद्वादशमाश्चत्वारः स्वराः तथा ङ ञ ण न मा इति वर्गाणां पञ्चमा वर्णाः दग्धाः विकटसंकटा अधरा अशुभनामकाश्च भवन्ति॥' -अ. वू. सा. गा. ४। २. कुचुजुगवसुदिससरआ वीय चउत्थाई वग्गवण्णाई। अहिधूमिआई मज्झा ते उण अहराइं वियडाइ॥ आ ई ऐ
औ द्वितीयचतुर्थाष्टमदशमश्चत्वारः स्वराः तथा खछठथफरषाः घझढधभवहाः, एते द्वितीयचतुर्थवर्गाणां
चतुर्दशवर्णाः अभिधूमिताः मध्यास्तथा उत्तराधरा विकटाश्चभवन्तीति॥'-अ.चू. सा. गा. ३। ३. “पढमं तईयसत्तम रधसर पढम तईयवग्गवण्णाइं। आलिंगियाहिं सुहया उत्तरसंकडअ णामाईं। आ इ ए ओ एते प्रथमसप्तमनवमाश्चत्वारः तथा क च ट त प य शा ग ज ड द व ल सा एते प्रथमतृतीयचतुर्दशवर्णाश्च आलिंगिताः, सुभगाः, उत्तराः संकटनामकाश्च भवन्तीति" अ. चू. सा. गा. २।
केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि : १४५