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और मकर में से कोई राशिलग्न हो और चन्द्रमा चतुर्थ में बैठा हो, तो विदेशी किसी निश्चित स्थान पर स्थित है, ऐसा फल समझना चाहिए।
यदि लग्न का स्वामी लग्न स्थान या दसवें स्थान में स्थित हो अथवा ४७ इन भावों में स्थित हो और लग्न स्थान के ऊपर उसकी दृष्टि हो, तो प्रवासी सुखपूर्वक परदेस में रहता हुआ वापस आता है। यदि लग्नेश ६३८२ इन स्थानों में हो, तो परदेसी रास्ते में आता हुआ समझना चाहिए। लग्न चर हो, चन्द्रमा चर राशि पर और सौम्य ग्रह-चन्द्र, बुद्ध, गुरु, शुक्र १।३।४।५।६।१० में स्थित हों और चन्द्रमा वक्र गतिवाला हो, तो परदेसी थोड़े ही समय में लौट आता है। २।३।५।६। ७ इन स्थानों में रहने वाले ग्रह वक्र गति हों, गुरु १। ४।७। १० स्थानों में हो और शुक्र, नवम, पंचम स्थान में हो, तो विदेशी शीघ्र आता है। शुक्र और गुरु लग्न में हों तो आनेवाले की चोरी होती है। बृहस्पति अपनी उच्च राशि पर हो अथवा दसवें स्थान में हो तो परदेस में गये व्यक्ति को अधिक धनलाभ कहना चाहिए। यदि शुक्र, बुध, चन्द्रमा, दसवें स्थान में स्थित हों, तो परदेसी सुखपूर्वक धन, यश और सम्मान को प्राप्त कर कुछ दिनों में लौटता है। यदि सप्तम स्थान का स्वामी प्रश्नकुण्डली में लग्न में हो और लग्नेश सप्तम स्थान में स्थित हो, तो प्रवासी जल्दी वापस आता है।
यदि प्रश्नकाल में स्थित लग्न हो और चन्द्रमा स्थिर राशि में स्थित हो तथा मन्दगति वाले ग्रह केन्द्र-१।४।७।१० स्थानों में स्थित हों, लग्न और लग्नेश दृष्टिहीन हों, तो इस प्रकार की प्रश्न स्थिति में परेदसी का आगमन नहीं होता है। मंगल दसवें स्थान में स्थित हो तथा वक्र गति वाले ग्रहों के साथ इत्थशाल करता हो और चन्द्रमा सौम्य ग्रहों से अदृष्ट हो, तो प्रवासी जीवित नहीं लौटता। तथा सौम्यग्रह-चन्द्रमा बुध, गुरु, शुक्र ६।८।१२ इन भावों में स्थित हों और निर्बल पाप ग्रहों से दृष्ट हों और चन्द्रमा एवं सूर्य पाप ग्रहों से दृष्ट हों तो दूर स्थित प्रवासी की मृत्यु कहनी चाहिए। यदि पृष्ठोदय मेष, वृष, कर्क, धनु
और मकर राशियाँ पाप ग्रह से युक्त हों एवं १।४।५।६७।८।६।१० इन स्थानों में पाप ग्रह हों तथा शुभ ग्रहों की दृष्टि इन स्थानों पर न हो, तो प्रवासी की मृत्यु कहनी चाहिए।
सूर्य प्रश्नकुण्डली के नौवें भाव में स्थित हो, तो प्रवासी को रोग पीड़ा; बुध इसी स्थान में हो तथा शुभग्रहों की दृष्टि हो, तो सम्मान प्राप्ति; मंगल इसी भाव में शुभग्रहों से अदृष्ट हो, तो संकट; गुरु इसी भाव में लग्नेश या दशमेश होकर बैठा हो, तो अर्थ प्राप्ति और शनि इसी भाव में अष्टमेश होकर स्थित हो, तो नाना प्रकार के कष्ट प्रवासी को कहने चाहिए। यदि प्रश्नकाल में कर्क, वृश्चिक, कुम्भ और मीन लग्न हों, लग्नेश पाप ग्रहों के साथ हो और चन्द्रमा चर राशि में स्थित हो, तो विदेशी आने का विचार करने पर भी नहीं आ सकता है। हाँ वह सुखपूर्वक कुछ समय तक वहाँ रह जाने के बाद आता है। लग्न द्विस्वभाव हो और चन्द्रमा चर राशि में हो, तो शत्रु आते हुए प्रवासी को बीच में रोककर कष्ट देता है। लग्न स्थान से जितने स्थान में बली ग्रह स्थित हों, उतने ही मास में प्रवासी
१. प्र. वै. पृ. ७०-७१। २. शीघ्र गति वाला ग्रह पीछे और मन्द गति वाला ग्रह आगे हो तो इत्थशाल योग होता है।
१४४ : केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि