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________________ उत्तराक्षरेषु नास्ति गमनम् । यत्र प्रश्ने द्विपादाक्षराणि भवन्ति ड ग क ख अन्तदीर्घ स्वर संयोगे अनभिहतश्च गमनहेत्वर्थः । इति गमनागमनम् ३ । अर्थ - गमनागमन प्रश्न को कहते हैं- आ ई ऐ औ इन दीर्घ स्वरों से युक्त प्रश्नाक्षर हों तो पृच्छक का गमन होता है । यदि उत्तराक्षरों- क ग ङ च ज ञ ट ड ण त द न प उत्तर स्वर अ इ. ए ओ संयुक्त हों तो पृच्छक जिस परदेसी के सम्बन्ध में प्रश्न करता है, वह अवश्य आता है। यदि पृच्छक के प्रश्नाक्षर उत्तर संज्ञक हों तो गमन नहीं होता है। जहाँ प्रश्न में द्विपाद संज्ञक अ ए क च ट त प य श वर्ण, ड ग क ख तथा य र ल व ये वर्ण दीर्घ मात्राओं से युक्त हों एवं अनभिहत संज्ञके वर्ण प्रश्नाक्षर हों, वहाँ गमन करने में कारण होते हैं अर्थात् उपर्युक्त प्रश्नाक्षरों के होने पर गमन होता है । इस प्रकार गमनागमन प्रकरण समाप्त हुआ । विवेचन - इस प्रकरण में आचार्य ने पथिक के आगमन एवं गमन के प्रश्न का विचार किया है। यदि प्रश्नाक्षरों का आद्य वर्ण दीर्घ मात्रा से युक्त हो तो पृच्छक का गमन कहा चाहिए। क ग च ज ट ड त द न प ब म य ल श स इन वर्गों में से हस्व मात्रा युक्त कोई वर्ण आद्य प्रश्नाक्षर हो तो पथिक का आगमन बतलाना चाहिए। यदि प्रश्नाक्षरों में आद्य प्रश्नाक्षर द्विपाद संज्ञक हो और द्वितीय प्रश्नाक्षर चतुष्पाद संज्ञक हो, तो सवारी द्वारा गमन कहना चाहिए। यदि आद्य प्रश्नाक्षर द्विपाद संज्ञक और द्वितीय प्रश्नाक्षर अपाद संज्ञक हो, तो बिना सवारी के पैदल गमन बतलाना चाहिए । प्रश्न का आद्यक्षर अ ए क च ट तप व श इनमें से कोई हो और वह दीर्घ हो तो निश्चय ही गमन करना चाहिए । यदि प्रश्नाक्षरों में आद्य वर्ण अधर मात्रा वाला हो तो शीघ्र गमन और उत्तर मात्रा वाला हो तो गमनाभाव कहना चाहिए । पथिकागमन के प्रश्न में जितने व्यंजन हों, उनकी संख्या को द्विगुणित कर मात्रा संख्या की त्रिगुणित राशि में जोड़ दें और जो योगफल हो उसमें दो का भाग दें, एक शेष रहे तो शीघ्र आगमन और शून्य शेष में विलम्ब से आगमन कहना चाहिए । प्रश्नशास्त्र के ग्रन्थान्तरों में कहा गया है कि यदि प्रश्न लग्न से चौथे या दशवें स्थान में शुभ ग्रह हों तो गमनाभाव और पाप ग्रह हों तो अवश्य गमन होता है । आगमन के प्रश्न में यदि प्रश्न काल की कुण्डली में २।५ । ८ । ११ स्थानों में ग्रह हों, तो विदेश गये हुए पुरुष का शीघ्र आगमन होता है । २।५।११ इन स्थानों में चन्द्रमा स्थित हो, तो सुखपूर्वक पथिक का आगमन होता है। प्रश्न कुण्डली के आठवें भाग में स्थित चन्द्रमा पथिक के रोगी होने की सूचना देता है । यदि प्रश्न लग्न से सप्तम भाव में चन्द्रमा हो, तो पथिक को मार्ग में आता हुआ कहना चाहिए । प्रश्नकाल में चर राशियों - मेष, कर्क, तुला १. अन्तः दीर्घस्वरसंयोगे क. मूः । २. अभिहत - क. मू. । ३. के. प्र. र. पू. ६१ । बृहज्ज्योतिषार्णव, अ. ५। केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि : १४३
SR No.002323
Book TitleKevalgyan Prashna Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages226
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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