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मंगलानयन-४३८ + २१ + ३३ + ५३ = ५४५ + १२ = ४५ लब्धि, ५ शेष, यहाँ पाँचवीं संख्या सिंह राशि की हुई।
बुधानयन-४३८ + ३२ + ४० + ५३ = ५६३ - १२ = ४६ लब्धि, ११ शेष, यहाँ ११वीं संख्या कुम्भ राशि की हुई।
गुरु-आनयन-४३८ + २३ + ६ + ५३ = ५२० + १२ = ४३ लब्धि, ४ शेष चौथी संख्या कर्क राशि की है, अतः गुरु कर्क राशि का हुआ।
शुक्रानयन-४३८ + २५ + 0 + ५३ = ५१५ + १२ = ४२ लब्धि, ११ शेष, ग्यारहवीं संख्या कुम्भ राशि की है, अतः शुक्र कुम्भ राशि का हुआ।
शन्यानयन-४३८ + २५ + ३ + ५३ = ५१६ : १२ = ४३ लब्धि, ३ शेष, तीसरी राशि मिथुन है, अतः शनि मिथुन का है।
राहु-आनयन-४३८ + ३६ + ७७ + ५३ = ६०४ + १२ = ५० लब्धि, ४ शेष चौथी राशि कर्क है, अतः राहु कर्क का हुआ। राहु की राशि में ६ राशि जोड़ने से केतु की राशि आती है, अतः यहाँ केतु मकर राशि का है।
नष्ट जन्मपत्रिका-स्वरूप जन्मसंवत् क्रोधी शुभमास माघ, शुक्लपक्ष, षष्ठी तिथि, गुरुवार को विष्कम्भ योग में - जन्म हुआ। जातक का जन्म लग्न ६। १३ है जन्मकुण्डली निम्न प्रकार हुई
__ जन्मकुण्डली चक्र
शुपबु TLE१२चं.X सूप०के
२ X ४ गु. रा. X ६ ३श.
मं. विशेष-नष्ट-विधि से बनायी जन्मकुण्डली का फल जातक ग्रन्थों के आधार से कहना चाहिए। तथा पहले जो मास, पक्ष, दिन और इष्टकाल का आनयन किया है, उस इष्टकाल पर से गणित द्वारा लग्न का साधन कर उसी समय के ग्रह लाकर गणित से नष्ट जन्मपत्री . बनायी जा सकती है। इस इष्टकाल की विधिपर-से जन्मकुण्डली के समस्त गणित को कर लेना चाहिए।
गमनागमन प्र
अथगमनागमनमाह-आ ई ऐ औ दीर्घस्वरसंयुक्तानि प्रश्नाक्षराणि भवन्ति, तदा गमनं भवत्येव । उत्तराक्षरेषु उत्तरस्वरसंयुक्तेषु अ इ ए ओ एवमादिष्वागमनममादिशेत्
१४२ : केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि