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________________ ग्रामबाह्य, द्विगव्यूतिः; चवर्गे ४ गव्यूति; टवर्गे ६ गव्यूतिः; तवर्ग १२ गव्यूतिः; पवर्गे २४ गोव्यूतिः; यवर्गे ४८ गव्यूतिः, शवर्गे ६६ गव्यूतिः, ऊ अ ण न माः १०० गव्यूतिः। या गव्यूतिस्तदेव दिनमासवर्षसंख्यास्वरसंयोगेऽस्ति तथा सा वर्गस्य पूर्वोक्तक्रमेण क च ट त प य शादीनां विनिर्दिशेत्। अर्य-अ आ इन उभय वर्णों की एक संख्या, इ, ई इन दोनों वर्गों की दो संख्या; उ ऊ इन दोनों वर्गों की तीन संख्या; ए ऐ इन दोनों वर्गों की चार संख्या, ओ औ इन दोनों वर्गों की पाँच संख्या एवं अं अः इन दोनों वर्गों की छः संख्या निर्धारित की गयी है। जहाँ जितने अक्षर हों, वहाँ उतनी संख्या ज्ञात कर लेनी चाहिए। केवलज्ञान में जो स्वर संख्या और स्वर व्यंजन संयुक्त संख्या देखी गयी है; यहाँ उसी का व्याख्यान किया जाता ___अ क च ट त प य शादि वर्गों में-अ वर्ग प्रश्नाक्षरों में गाँव में; कवर्ग में ग्राम बाह्य दो गव्यूति मात्र; चवर्ग में ४ गव्यूति; टवर्ग में ६ गव्यूति; तवर्ग में १२ गव्यूति; पवर्ग में २४ गव्यूति; यवर्ग में ४८ गव्यूति; शवर्ग में ६६ गव्यूति। और ङञ ण न म में १०० गव्यूति समझना चाहिए। जिस वर्ग की जो गव्यूति संख्या बतलायी गयी है, वही उसकी दिन, मास, वर्ष संख्या स्वरों के संयुक्त होने पर भी मानी जाती है। तथा पहले बतायी हुई विधि से क च ट प य शादि वर्गों की संख्या का निर्देश करना चाहिए। विवेचन-यों तो आचार्य ने पहले भी तिथियों की संज्ञाओं के साथ वर्णों की गव्यूति संख्या कही है, पर वहाँ पर उसका अभिप्राय वस्तु की दूरी निकालने का है और जो ऊपर वर्णों की गव्यूति बतायी है, उसका रहस्य दिन, मास, वर्ष संख्या निकालने का है। अभिप्राय यह है कि पहली गव्यूति-संज्ञा-द्वारा स्थान दूरी निकली गयी है और इसके द्वारा समय सम्बन्धी दूरी-कालावधि का निर्देश किया गया है। अतएव यहाँ गव्यूति शब्द का अर्थ कोश न लेकर समय की संख्या का बोधक द्विगुनी राशि लेना चाहिए। ‘बृहज्ज्योतिषार्णव' के पंचम अध्याय के रत्न प्रकरण में गव्यूति शब्द सामान्य संख्या वाचक तथा जैन प्रश्नशास्त्र में दो संख्या का वाचक आया है। अतएव यहाँ पर जिस वर्ग की जितनी गव्यूति बतलायी गयी है, उसकी दूनी संख्या ग्रहण करनी चाहिए। ऊपर जो स्वरों की संख्या कही है, उसमें भी : गव्यूति संख्या ही समझनी चाहिए। अतः अ = १, आ = २, इ = ३, ई = ४, उ = ५, ऊ = ६, ए = ७, ऐ = ८, ओ = ६, औ = १०, अं = ११, अः = १२ है। तात्पर्य यह है कि यदि किसी का प्रश्न यह हो कि अमुक कार्य कब पूरा होगा? तो इस प्रकार के प्रश्न में यदि प्रश्नाक्षरों का आद्य वर्ण अ हो तो एक दिन या एक मास अथवा एक वर्ष में; आ हो तो दो दिन या दो मास अथवा दो वर्षों में; इ हो तो तीन दिन या तीन १. चवर्गेत्रिगव्यूतिः-क. मू.। २. पवर्गे २८ गव्यूतिः-क. मू.। ३. तदा-क. मू.। ४. “गोयूँतिः, क्रोशद्वये, क्रोशे च”–श. म. नि. पृ. १४१। “गव्यूतिः संख्या वाचकः “-बृ. ज्यो, अ. केरल . प्रकरण। १३२ : केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि
SR No.002323
Book TitleKevalgyan Prashna Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages226
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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