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में फाल्गुन मास में कार्य सिद्धि कहनी चाहिए। इसी प्रकार नष्ट वस्तु की प्राप्ति भी फाल्गुन मास में उक्त प्रश्नाक्षरों के होने पर कहनी चाहिए। ___इन मास संज्ञाओं का सबसे बड़ा उपयोग नष्ट जातक बनाने के लिए करना चाहिए। जिन लोगों की जन्मपत्री खो गयी है या जिनकी जन्मपत्री नहीं है, उनकी जन्मपत्री इस दिन, मास, संवत्सर परीक्षा पर-से बनायी जा सकती है। यों तो ज्योतिष-शास्त्र में अनेक गणित के नियम प्रचलित हैं जिन पर से जातक की जन्मपत्री बनायी जाती है। पर प्रस्तुत प्रकरण में आचार्य ने केवल प्रश्नाक्षरों पर से बिना अपने गणित क्रिया के ही जन्म मास, जन्मतिथि और जन्मदिन निकाला है। यदि पृच्छक स्वस्थ मन से अपने इष्टदेव की आराधना कर प्रश्न करे तो उसके प्रश्नाक्षरों का विश्लेषण कर विचार करना चाहिए। आद्य प्रश्नाक्षर अ ए क हों तो पृच्छक का जन्म फाल्गुन मास में, च ट हों तो चैत्र मास में, त प हों तो कार्तिक मास में, य श हों तो मार्गशीर्ष मास में, थ फ र ष हों तो माघ मास में, इ ओ ग ज ड हों तो वैशाख मास में, द ब ल स हों तो ज्येष्ठ मास में, ई औ घ झ ढ हों तो. आषाढ़ मास में, ध भ व ह हों तो श्रावण मास में, उ ऊ ङ ञ ण न हों तो भाद्रपद में, म अनुस्वार और विसर्गयुक्त आद्य प्रश्नाक्षर हों तो क्वार मास में एवं आ ई ख छ ठ हों तो पौष मास में समझना चाहिए। परन्तु यहाँ इतना स्मरण रखना होगा कि प्रश्नाक्षरों को ग्रहण करते समय आलिंगितादि पूर्वोक्त समय का ऊहापोह साथ-साथ करना है, बिना समय का विचार किये प्रश्नाक्षरों का फल सम्यक् नहीं घटता है। आलिंगित और अभिधूमित समय के प्रश्न तो सार्थक निकलते हैं। लेकिन दग्ध समय के प्रश्न प्रायः निरर्थक होते हैं। अतएव दग्ध समय में नष्टजातक का विचार नहीं करना चाहिए। आचार्य ने उपर्युक्त प्रकरण में वर्ग-विभाजन की प्रणाली पर जो संज्ञाएँ निश्चित की हैं, उनसे दग्ध समय का निषेध अर्थात् निकल आता है। यों तो नष्टजातक के मास का निर्णय करने की और भी अनेक प्रक्रिया हैं, जिनमें गणित के आधार पर से नष्ट जातक का विचार किया गया है। एक स्थान पर बताया है कि प्रश्न की आलिंगित मात्राओं को प्रश्न की दग्ध मात्राओं से गुणनफल में प्रश्न की अभिधूमित मात्राओं से गुणा कर १२ का भाग देना चाहिए। एकादि शेष में क्रमशः चैत्रादि मासों को समझना चाहिए। तात्पर्य यह है कि प्रश्न की आलिं०४ अभि० x दग्ध मात्रा
-= एकादि शेष मास आते हैं
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पक्ष का विचार अ ए क च ट त प य शाः शुक्लपक्षः, आ ऐ ख ठ थ फ र षाः कृष्णपक्षः, इ ओ' ग ज ड द ब ल साः शुक्लपक्षः, चतुर्थ वर्गोऽपि ई और घ झ द ध म व हाः कृष्णपक्षः, पञ्चमवर्गोभयपक्षाभ्यामेकान्तरितभेदेन ज्ञातव्यः ।
१. 'ओ' इति पाठो नास्ति-क. मू.। ३. चतुर्थवर्ग : कृष्णपक्षः-क. मू.। ३. के. प्र. र. पृ.११।
१२८ : केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि