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अभिप्राय यह है कि यदि प्रश्न के आदि में आलिंगित मात्रा हो या समस्त प्रश्नाक्षरों में आलिंगित मात्राओं का योग अधिक हो तो पृच्छक को लाभ; अभिधूमित संज्ञक प्रश्नाक्षरों की आदि मात्रा हो या समस्त प्रश्नाक्षरों में अभिधूमित मात्राओं की संख्या अधिक हो तो अल्पलाभ एवं दग्ध संज्ञक आदि मात्रा हो या समस्त प्रश्नाक्षरों में दग्ध संज्ञक मात्राओं की अधिकता हो तो लाभ का अभाव समझना चाहिए। ____ ज्योतिष के अन्य ग्रन्थों में बताया गया है कि तीन और पाँच आलिंगित मात्राओं के होने पर स्वर्ण लाभ; सात, आठ और नौ आलिंगित मात्राओं के होने पर स्वर्ण मुद्राओं का लाभ; दो और चार आलिंगित मात्राओं के होने पर रजत मुद्राओं का लाभ एवं एक या दो आलिंगित मात्राओं के होने पर साधारण द्रव्य लाभ होता है। एक, दो और तीन अभिधूमित मात्राओं के होने से साधारण द्रव्य लाभ; चार, पाँच और छः अभिधूमित मात्राओं के साथ दो आलिंगित मात्राओं के होने से सहस्र मुद्राओं का लाभ; सात, आठ और दस अभिधूमित मात्राओं के साथ दो से अधिक आलिंगित मात्राओं के होने से आभूषण लाभ; दो और तीन अभिधूमित मात्राओं के साथ पाँच आलिंगित मात्राओं के होने से कांचन और पृथ्वी लाभ; नौ और दस से अधिक अभिधूमित मात्राओं के साथ एक या दो दग्ध मात्राओं के होने से हानि; तीन या चार अभिधूमित मात्राओं के साथ दो या तीन दग्ध मात्राओं के होने से लाभ का अभाव; तीन से अधिक आलिंगित मात्राओं के साथ एक या दो दग्ध और चार अभिधूमित मात्राओं के होने से सम्मान लाभ; पाँच आलिंगित मात्राओं के साथ दो अभिधूमित और तीन दग्ध मात्राओं के होने से पृथ्वी लाभ; चार दग्ध मात्राओं के साथ एक आलिंगित और दो अभिधूमित होने से सहस्र मुद्राओं की हानि; सात अभिधूमित मात्राओं के साथ इतनी ही आलिंगित मात्राओं के होने से अपरिमित धन लाभ तथा दग्ध मात्राओं के होने से धन हानि; चार अभिधूमित मात्राओं के साथ चार आलिंगित मात्राओं के होने से स्त्री लाभ; सात दग्ध मात्राओं के साथ एक आलिंगित और एक अभिधूमित के होने से स्त्री-हानि और धन-हानि; तीन आलिंगित मात्राओं के साथ सात अभिधूमित और दो दग्ध मात्राओं के होने से सैकड़ों रुपयों का लाभ; ग्यारह दग्ध मात्राओं के साथ पाँच अभिधूमित और चार आलिंगित हों तो अपार कष्ट के साथ धन-हानि; दस से अधिक आलिंगित मात्राओं के साथ दो दग्ध और चार से कम अभिधूमित मात्राओं के होने पर वस्त्र, धन और कांचन का लाभ एवं तीनों संज्ञकों की मात्राओं की संख्या समान हो तो साधारण लाभ कहना चाहिए।
यों तो लाभालाभ निकालने के अनेक नियम हैं, पर आलिंगितादि मात्राओं के लिए गणित के निम्न नियम अधिक प्रचलित हैं
१. आलिंगित मात्राओं को दग्ध मात्राओं की संख्या से गुणाकर अभिधूमित मात्राओं की संख्या का भाग देने पर सम शेष में लाभ और विषम शेष में हानि समझना चाहिए। यदि इस गणित प्रक्रिया में शून्य लब्धि और विषम शेष आया हो तो महाहानि तथा शून्य शेष और शून्य लब्धि हो तो अपार कष्ट समझना चाहिए।
२. प्रश्नाक्षरों में आलिंगितादि संज्ञाओं में जिस संज्ञा की मात्राएँ अधिक हों, उन्हें सात
केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि : १२१