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________________ अर्थ-आलिंगित मात्राओं का स्वर्ग में, अभिधूमित का पृथ्वी पर और दग्ध मात्राओं का पाताल लोक में निवास रहता है। विवेचन-यदि प्रश्नाक्षरों के आदि में आलिंगित मात्राएँ हों तो उस प्रश्न का सम्बन्ध स्वर्ग से, अभिधूमित मात्राएँ हों तो पृथ्वी से और दग्धमात्राएँ हों तो पाताल लोक से समझना चाहिए। यहाँ मात्रा निवास का कथन चोरी और मूक प्रश्नों के निर्णय के लिए किया है। ज्योतिष में बताया गया है कि यदि प्रश्नाक्षरों में तृतीय, सप्तम और नवम मात्राओं में से कोई मात्रा हो तो देव सम्बन्धी प्रश्न; प्रथम, द्वितीय और द्वादश मात्राओं में से कोई मात्रा हो तो मनुष्य सम्बन्धी प्रश्न; चतुर्थ, अष्टम और दशम मात्राओं में से कोई मात्रा हो तो पक्षिसम्बन्धी प्रश्न एवं पंचम, षष्ठ और एकादश मात्राओं में से कोई मात्रा हो तो दैत्य सम्बन्धी प्रश्न समझना चाहिए। यदि देवयोनि सम्बन्धी प्रश्न हो तो प्रश्नाक्षरों के प्रारम्भ में आलिंगित मात्रा होने से देवका निवास स्वर्ग में, अभिधूमित होने से मृत्यु लोक में और दग्ध मात्रा होने से पाताल लोक में समझना चाहिए। इसी प्रकार मनुष्य सम्बन्धी प्रश्न में आलिंगित और दग्ध मात्राओं के होने पर मृत मनुष्य सम्बन्धी प्रश्न और अभिधूमित मात्राओं के होने पर जीवित मानव सम्बन्धी प्रश्न समझना चाहिए। आलिंगित अ इ ए ओ आलिंगितादि मात्राओं का स्वरूप बोधक चक्र अभिधूमित दग्ध संज्ञा आ ई ऐ औ उ ऊ अं अः स्वर-मात्राएँ संज्ञा रज तम गुण पृथ्वी पाताल निवास स्थान पुरुष स्त्री नपुंसक सत्त्व __स्वर्ग लाभालाभ प्रश्नविचार प्रश्ने आलिङ्गितैलाभः, अभिधूमितैरल्पलाभः, दग्धैर्नास्ति' लाभः। अर्थ-पृच्छक के प्रश्न के प्रश्नाक्षर आलिंगित हों तो लाभ, अभिधूमित हों तो अल्पलाभ और दग्ध हों तो लाभ नहीं होता है। विवेचन-यों तो लाभालाभ प्रश्न का विचार ज्योतिष शास्त्र में अनेक दृष्टिकोणों से किया गया है, पर यहाँ आचार्य ने आलिंगितादि प्रश्नाक्षरों पर-से जो विचार किया है, उसका १. अभिधूमितेऽल्पलाभः-क. मू.। २. दग्धे नास्ति लाभः-क. मू.। १२० : केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि
SR No.002323
Book TitleKevalgyan Prashna Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages226
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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