SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 121
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धातु तो श्याम-श्वेत वर्ण की वस्तु; प्रथम आलिंगित, द्वितीय दग्ध और तृतीय अधिभूमित हो तो काले रंग की वस्तु एवं प्रथम दग्ध, द्वितीय अभिधूमित और तृतीय आलिंगित स्वर हो तो हरे रंग की वस्तु मुट्ठी में समझनी चाहिए। यदि प्रश्नाक्षरों में पृच्छक का प्रथम स्वर अभिधूमित, द्वितीय आलिंगित और तृतीय दग्ध हो तो विचित्र वर्ण की वस्तु, तीनों स्वर आलिंगित हों तो शृंग वर्ण की वस्तु, तीनों दग्ध हों तो नील वर्ण की वस्तु एवं तीनों अभिधूमित स्वर हों तो कांचन वर्ण की वस्तु समझनी चाहिए। मुष्टिका प्रश्न में जीव, धातु और मूल सम्बन्ध का घोतक चक्र जीव मूल तिर्यक् दृष्टि ऊर्ध्व दृष्टि भूमि दृष्टि उदर, हृदय, कटि स्पर्श । बाहु, मुख, सिरस्पर्श वस्ति, गुदा, जंघा स्पर्श अधःस्थान में स्थित ऊर्ध्व स्थान में स्थित सम्मुख स्थित - अग्नि पास में जल पास में अन्न पास में पूर्व, पश्चिम, अग्नि उत्तर, दक्षिण, ईशान वायव्य व नैर्ऋत कोण कोण से प्रश्न कोण से प्रश्न से प्रश्न विशेष-चम्पा, गुलाब, नारियल, आम, जामुन आदि प्रसिद्ध प्रश्नवाक्यों का उच्चारण प्रायः सदा सभी पृच्छक करते हैं। अतएव पृच्छक से इन प्रसिद्ध फल, पुष्पादि के नामों को छोड़ अन्य प्रश्नवाक्य कहलाकर ग्रहण करना चाहिए। अथवा पृच्छक आते ही जिस वाक्य से बातचीत आरम्भ करे उसे ही प्रश्नवाक्य मानकर प्रश्नाक्षर ग्रहण करने चाहिए। प्रश्नफल प्रतिपादन में सबसे बड़ी विशेषता प्रश्नवाक्य की है। अतः फल प्रतिपादक को प्रश्नवाक्य सावधानी और चतुराई पूर्वक ग्रहण करना चाहिए। पूर्वोक्त प्रक्रिया से जीव, मूल और धातु के भेद-प्रभेदों का विशेष विचार कर फल अवगत करना चाहिए। आलिंगितादि मात्राओं का निवास आलिंगएसु सग्गे' मत्ता अभिधूमिएसु दड्ढेसु। ण पुलया एवं खु सारणा वायरणे ?॥ १. सग्गं-क. मू.। २. अभिधूमितेसु-क. मू.। ३. माहीसु-ता. मू.। दंडेसु-क. मू.। ४. पुढविया क. मू.। केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि : ११६
SR No.002323
Book TitleKevalgyan Prashna Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages226
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy