SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 120
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ___अर्थ-आलिंगित वर्ण जीवसंज्ञक; अभिधूमित मूलसंज्ञक और दग्ध वर्ण धातुसंज्ञक होते हैं। प्रश्नाक्षरों में जिस प्रकार के वर्गों की अधिकता रहती है; उसी संज्ञक प्रश्न ज्ञात करना चाहिए। विवेचन-जब कोई व्यक्ति आकर प्रश्न करता है कि मेरे मन में कौन-सा विचार है? उस समय पहले की प्रक्रिया के अनुसार फल; पुष्प और देवता आदि के नाम पूछकर प्रश्नाक्षर ग्रहण कर लेने चाहिए। यदि प्रश्नाक्षरों में आलिंगित वर्ण अधिक हों तो जीव सम्बन्धी प्रश्न; अभिधूमित वर्ण हों तो मूल सम्बन्धी प्रश्न एवं दग्ध वर्ण अधिक हों तो धातु सम्बन्धी प्रश्न समझना चाहिए। ग्रन्थान्तरों में प्रश्नवाक्य की प्रथम मात्रा से ही जीव, मूल और धातु सम्बन्धी विचार किया गया है। तुलनात्मक दृष्टि से विचार करने पर उपर्युक्त गाथावाली-वर्णाधिक वाली प्रक्रिया विशेष वैज्ञानिक अँचती है। ____ मूल प्रश्न करते सम पृच्छक की ऊर्ध्व' दृष्टि हो तो जीवन-सम्बन्धी विचार, भूमि की ओर दृष्टि हो तो मूल सम्बन्धी विचार, तिरछी दृष्टि हो तो धातु सम्बन्धी विचार एंव मिश्र दृष्टि-कुछ भूमि की ओर और कुछ आकाश की ओर दृष्टि हो तो मिश्न-जीव, धातु और मूल सम्बन्धी मिश्रित विचार पृच्छक के मन में समझना चाहिए। यदि पृच्छक बाहु', मुख और सिर का स्पर्श करते हुए प्रश्न करे तो जीव सम्बन्धी विचार; उदर, हृदय और कटि का स्पर्श करते हुए प्रश्न करे तो धातु सम्बन्धी एवं वस्ति, गुह्य, जंघा और चरण का स्पर्श करते हुए प्रश्न करे तो मूल सम्बन्धी विचार पृच्छक के मन में समझना चाहिए। ऊर्ध्व स्थित होकर प्रश्न करे तो जीव चिन्ता, सामने होकर प्रश्न करे तो मूल चिन्ता और नीचे स्थित होकर प्रश्न करे तो धातु चिन्ता कहनी चाहिए। यदि प्रश्न के समय पृच्छक जल के पास हो तो जीवचिन्ता, अन्न के पास हो तो मूलचिन्ता और अग्नि के समीप हो तो धातुचिन्ता कहनी चाहिए। पृच्छक पूर्व, पश्चिम, आग्नेय कोणों में स्थित होकर प्रश्न करे तो धातु-सम्बन्धी विचार; उत्तर, दक्षिण और ईशान कोण में स्थित होकर प्रश्न करे तो जीवचिन्ता एवं वायव्य और नैर्ऋत्यकोण में स्थित होकर प्रश्न करे तो मूल चिन्ता पृच्छक के मन में समझनी चाहिए। __ मुष्टिका प्रश्न विचार-जब यह पूछा जाए कि मुट्ठी में किस रंग की चीज है? तो पृच्छक के प्रश्नाक्षर लिख देना चाहिए। यदि प्रश्नाक्षरों में पहले के दो स्वर आलिंगित हों और तृतीय स्वर अभिधूमित हो तो मुट्ठी में श्वेत रंग की वस्तु; पूर्व के दो स्वर अभिधूमित हों और तृतीय स्वर दग्ध हो तो पीले रंग की वस्तु; पूर्व के दो स्वर दग्ध और तृतीय आलिंगित हो तो रक्त-श्याम वर्ण की वस्तु; प्रथम दग्ध, द्वितीय आलिंगित और तृतीय अभिधूमित हो १. के, प्र. र. पृ. ४५। २. के प्र. र. पृ. ४५। ३. के. प्र. र. पृ. ४६ । ४. के. प्र. र. पृ. ४६-४८ । M6 ११८ : केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि
SR No.002323
Book TitleKevalgyan Prashna Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages226
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy