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से गुणाकर २२ का भाग देने पर सम शेष में लाभ और विषम शेष में लाभ का भाव समझना चाहिए।
३. जिस संज्ञक अधिक मात्राएँ हों, उन्हें तीन स्थानों में रखकर एक जगह आठ से, दूसरी जगह चौदह से और तीसरी जगह चौबीस से गुणा कर तीनों गुणनफल राशियों में सात का भाग देना चाहिए। यदि तीनों स्थानों में सम शेष बचे तो अपरिमित लाभ; दो स्थानों में सम शेष बचे तो शक्ति प्रमाण लाभ और एक स्थान में सम शेष बचे तो साधारण लाभ होता है। तीनों स्थानों में विषम शेष रहने से निश्चित हानि होती है।
द्रव्याक्षरों की संज्ञाएँ | दो बड्ढा दो दीहा दो तत्ताहा दो य चउरस्स।
दो तिक्कायच्छिय दो वक्कक्खरा भणिया ॥ अर्थ-दो अक्षर वृत्ताकार, दो दीर्घाकार, दो त्रिकोणाकार, दो चौकोर और दो सच्छिद्र . कहे गये हैं।
विवेचन-चोरी गयी वस्तु के स्वरूप विवेचन के लिए तथा प्रश्नों के उत्तर के लिए यहाँ आचार्य ने स्वरों का आकार-प्रकार बताया है। बारह स्वरों में दो स्वर वृत्ताकार, दो दीर्घाकार, दो त्रिकोण, दो चौकोर, दो छिद्राकार और दो वक्राकार हैं। आगे नाम सहित वर्णन किया जाता है
स्वर और व्यंजनों की संज्ञाएँ और उनके फल अ इ वृत्तौ, आ ई दीर्यो, उ ए व्यस्त्रो, ऊ ऐ चतुरस्त्री, ओ अं सच्छिद्रौ, औ अः 'वृत्ताक्षरौ। अ ए क च ट त प य शाः वर्तुलाः, स्निग्धकराः लाभकराः-लाभा: जीवितार्थेषु गौरवर्णाः, दिवसचराः, गर्भे पुत्रकराः पूर्वाशावासिनः सच्छिद्राः। ऐ ख छ ठ थ फ र षाः दीर्घाः स्त्रियोऽलाभकराः, अच्छिद्राः, रात्रिचराः, गर्भे "पुत्रिकराः, शक्तियुक्ताः, पक्षाक्षराः, प्रथमवयसि दक्षिणदिग्वासिनः कृष्णवर्णाः।
अर्थ-अ इ ये दो स्वर वृत्ताकार-गोल; आ ई ये दो स्वर दीर्घाकार-लम्बे; उ ए ये दो स्वर तिस्राकार-त्रिकोण; ऊ ऐ ये दो स्वर आयताकार-चौकोर; ओ अं ये दो स्वर छिद्राकार-छेद सहित और औ अः ये दो स्वर वक्राकार-टेढ़े आकार के हैं। अ ए क च
१. वक्राक्षरी-ता. मू.। २. बालाः -ता. मू.। ३. जीवितार्थाः-क. मू.। ४. स्त्रीणाम्-क. मू.। ५. गर्भे बहुपुत्रिकराः-क. मू.। ६. चन्द्रोन्मीलनप्रश्नशास्त्रस्य ४६ तमश्लोकमादाय ५३ तमश्लोकपर्यन्तं-वर्णस्वरूपं द्रष्टव्यम्।
१२२ : केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि