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कामनाओं का औचित्य सिद्ध कर सके। फलतः उन्नत और विकसित बुद्धि, चाहे वह कैसी भी प्रचण्ड और अभिनव क्यों न हो, एक निमित्त मात्र है, जिसके द्वारा प्रवृत्तियाँ अपनी वासनापूर्ति तथा सन्तोषप्राप्ति की चेष्टा करती हैं। इस मत के अनुसार स्पष्ट है कि बुद्धि प्रवृत्ति की दासी मात्र है; क्योंकि जब प्रवृत्ति ही बुद्धि की प्रेरणात्मिका शक्ति है, तब उसकी यह दासी उसी पथ पर चलने के लिए बाध्य है, जिस पर चलना उसकी स्वामिनी को अभीष्ट
इसका सारांश यह है कि मानव जीवन में मूलरूप से स्थित वासनाओं-इच्छाओं की प्रतिच्छाया मात्र ही विचार, विश्वास, कार्य और आचरण होते हैं। अतः प्रश्नवाक्य की धारा से मानव-जीवन के तह में रहनेवाली प्रवृत्तियों का अति घनिष्ट सम्बन्ध होता है; क्योंकि मानव प्रवृत्ति ही वासना पूर्ण करने के लिए प्रेरणात्मक बुद्धि द्वारा प्रेरित होकर ज्ञानधारा को प्रवाहित करती रहती है। इस अविरल धारा का अनवच्छिन्न अंश प्रश्नवाक्य होता है, जिसका एक छोर प्रवृत्ति से सम्बद्ध रहता है। अतः प्रश्नवाक्य के विश्लेषण रूप धक्के से. हृदयस्थ कुछ प्रवृत्तियों का उद्घाटन हो जाता है। इसलिए तीनों प्रकार की योनियों द्वारा मानसिक चिन्ता का ज्ञान करना विज्ञान-सम्मत है।
चोरी की गयी वस्तु के सम्बन्ध में विशेष विचार-चोरी की गयी वस्तु के सम्बन्ध में योनिविचार के अतिरिक्त निम्न विचार करना अत्यावश्यक है। यदि प्रश्नलग्न में स्थिर राशि हो या स्थिर राशि का नवांश हो तो अपने ही व्यक्ति ने वस्तु चुरायी है और वह घर के भीतर ही है, प्रश्नलग्न में चर राशि हो अथवा चर राशिका नवांश हो तो दूसरे किसी ने वस्तु चुरायी है तथा वह उस वस्तु को लेकर दूर चला गया है। यदि प्रश्नलग्न में द्विस्वभाव राशि हो या कि द्विस्वभाव राशि का नवांश हो तो अपने घर के निकटवर्ती मनुष्य ने द्रव्य चुराया है और उसने उस द्रव्य को बहुत दूर नहीं, किन्तु पास में ही छिपाकर रख दिया है। यदि प्रश्नलग्न में चन्द्रमा हो तो पूर्व दिशा की ओर, चौथे स्थान में चन्द्रमा हो तो उत्तर दिशा की ओर, सप्तम स्थान में चन्द्रमा हो तो पश्चिम दिशा की ओर और दशम स्थान में चन्द्रमा हो तो दक्षिण दिशा की ओर चोरी की गयी वस्तु को समझना चाहिए। यदि लग्न स्थानपर सूर्य और चन्द्रमा की दृष्टि हो तो निश्चय ही अपने घर का मनुष्य चोर होता है। यदि प्रश्नलग्न स्वामी और सप्तम भाव का स्वामी लग्न में स्थित हों तो निश्चय ही अपने कुटुम्ब के मनुष्य को चोर और सप्तम भाव का स्वामी सप्तम, तृतीय या बारहवें भाव में स्थित हो तो प्रबन्धकर्ता, मैनेजर आदि को चोर समझना चाहिए। यदि प्रश्नकर्ता अपने हाथों को कपड़ों के भीतर रखकर-पाकिट, पतलून आदि के भीतर हाथ डालकर प्रश्न करे तो अपने घर का ही चोर और बाहर करके प्रश्न करे तो अन्य मनुष्य को चोर बतलाना चाहिए। ___ ज्योतिषी को लग्न के नवांशपर-से खोयी वस्तु का स्वरूप, द्रेष्काणपर-से चोर का स्वरूप, राशि पर-से दिशा, देश एवं कालादि का विचार और नवांश से जाति, अवस्था आदि का विचार करना चाहिए। यदि प्रश्नलग्न सिंह हो और उसमें सूर्य और चन्द्रमा स्थित हों तथा भौम और शनि की दृष्टि हो तो अन्धा चोर, चन्द्रमा बारहवें स्थान में हो तो बायें नेत्र से काना चोर ओर सूर्य बारहवें भाव में स्थित हो तो, दक्षिण नेत्र से काना चोर होता है।
११६ : केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि