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________________ भाव में स्थित हो तो मूँगफली के वृक्ष की चिन्ता समझनी चाहिए । शास्त्रकारों ने बुध का मूँग, शुक्र का सफेद अरहर, मंगल का चना, चन्द्रमा का तिल, सूर्य का मटर, बृहस्पति का. लाल अरहर, शनि का उड़द और राहु का कुलथी धान्य बताया है। यदि उपर्युक्त ग्रह अपने - अपने मित्र स्थान में हों तो उपर्युक्त धान्य रहनेवाले ग्रह से दृष्ट हो तो शीशम के वृक्ष की चिन्ता, चन्द्रमा अपनी उच्च राशि में हो और पाँचवें भाव में रहनेवाले ग्रहों से दृष्ट हो अथवा उच्च का चन्द्रमा चतुर्थ भाव में स्थित हो तो अनार और श्रीफल के वृक्ष की चिन्ता एवं शुक्र अपनी उच्च राशि में स्थित हो और सातवें भाव में रहनेवाले ग्रह से दृष्ट हो तो नीम के वृक्ष की चिन्ता अवगत करनी चाहिए । जीव, धातु और मूलयोनि के निरूपण का प्रयोजन-जीव, धातु और मूल इन तीनों योनियों के निरूपण का प्रधान उद्देश्य चोरी की गयी वस्तु का पता लगाना है । जीवयोनि में चोर का स्वरूप बताया गया है। जीवयोनि के अनुसार चोर की जाति, अवस्था, आकृति, रूप, कद, स्त्री, पुरुष एवं बालक आदि का कथन किया गया है। पूर्वोक्त जीवयोनि के प्रकरण में प्रश्न- वाक्यानुसार जाति, अवस्था, आदि का सम्यक् विवेचन किया गया है 1 विवेचन में प्रतिपादित फल से प्रश्नकुण्डली के अनुसार ग्रहों की स्थिति से चोर की जाति, अवस्था, आकृति आदि का पता लगाया जा सकता है । धातुयोनि में चोरी की गयी वस्तु का स्वरूप बताया गया है, अर्थात् पृच्छक के बिना बताये भी ज्योतिषी धातुयोनि के निरूपण से बता सकता है कि अमुक प्रकार की वस्तु चोरी गयी है या नष्ट हुई है। मूल योनि के निरूपण का सम्बन्ध मन की चिन्ता के निरूपण से है, अथवा किसी बगीचे आदि की सफलता-असफलता का विचार विनिमय करना तथा प्रश्न कुण्डली या प्रश्न वाक्यानुसार कहाँ पर किस प्रकार का वृक्ष फलीभूत हो सकता है और कहाँ नहीं आदि बातों का भी विचार किया जा सकता है । अथवा उपर्युक्त तीन योनियों का प्रयोजन दूसरे के मन की बात को जानना भी है। प्रश्नकर्ता के प्रश्नवाक्य से वर्तमान, भूत और भविष्यत् की सारी घटनाओं IIT सम्बन्ध रहता है। मनोविज्ञान के सिद्धान्तों से भी इस बात की पुष्टि होती है कि मानव के प्रश्नवाक्य या अन्य शारीरिक क्रियाएँ तीनों कालों की घटनाओं से सम्बन्ध रखती हैं। मनोविज्ञान के विद्वान् लाव ने अनेक प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध कर दिया है कि शरीर यन्त्र के समान है और उसका सारा आचरण यान्त्रिक क्रिया-प्रतिक्रिया के रूप में ही अनायास हुआ करता है। मानव के शरीर में किसी भौतिक घटना या क्रिया का उत्तेजन पाकर प्रतिक्रिया होती है । यही प्रतिक्रिया उसके आचरण में प्रदर्शित है। दूसरे मनोविज्ञान के प्रसिद्ध पण्डित फ्रायडै का कथन है कि मनुष्य के व्यक्तित्व का अधिकांश भाग अचेतन मन के रूप में है जिसे प्रवृत्तियों का अशान्त समुद्र कह सकते हैं । इस महासमुद्र में मुख्यतः काम की और गौणतः विभिन्न प्रकार की वासनाओं, इच्छाओं और कामनाओं की उत्ताल तरंगें उठती हैं, जो अपनी प्रचण्ड चपेट से जीवन नैया को आलोड़ित करती रहती हैं। मनुष्य के मन का दूसरा अंश चेतन है और यह निरन्तर घात-प्रतिघात के द्वारा अनन्त कामनाओं से प्रादुर्भूत होता है और उन्हीं को प्रतिबिम्बित करता रहता है । फ्रायडे के मतानुसार बुद्धि भी मनुष्य की प्रवृत्ति का एक प्रतीक है, जिसका काम केवल इतना ही है कि मनुष्य के द्वारा अपनी केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि : ११५
SR No.002323
Book TitleKevalgyan Prashna Chudamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages226
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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