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मात्राओं के होने से कर्णाभरण, उ ऊ इन दोनों मात्राओं के होने से नासिकाभरण, ए मात्रा के होने से ग्रीवाभरण; ऐ मात्रा के होने से कण्ठाभरण, ऋ तथा संयुक्त व्यंजन में ऊकार की मात्रा होने से हस्ताभरण, ओ औ इन दोनों मात्राओं के होने से जंघाभरण और अं. अः इन दोनों मात्राओं के होने से पादाभरण की चिन्ता कहनी चाहिए।
प्रश्नलग्नानुसार आभरणों की चिन्ता तथा घटित धातु योनि के अन्य भेदों की चिन्ता का विचार करना चाहिए। मिथुन, कन्या, तुला, धनु, इन प्रश्न लग्नों के होने पर मनुष्याभरण जानने चाहिए। यदि शुक्र लग्न में स्थित हो या लग्न को देखता हो तो कर्णाभरण, सूर्य लग्न में स्थित हो या लग्न को देखता हो तो नासिकाभरण, चन्द्रमा लग्न में स्थित हो या लग्न को देखता हो तो ग्रीवाभरण, बुध लग्न में स्थित हो या लग्न को देखता हो तो कण्ठाभरण, बृहस्पति लग्न में स्थित हो या लग्न को देखता हो तो हस्ताभरण, मंगल लग्न में स्थित हो या लग्न को देखता हो तो जंघाभरण और शनि एवं मंगल दोनों ही लग्न में स्थित हों या दोनों की लग्न के ऊपर त्रिपाद दृष्टि हो तो पादाभरण धातु की चिन्ता कहनी चाहिए। पादाभरण का विचार करते समय प्रश्न कुण्डली के सप्तम भाव से लेकर द्वादश भाव तक स्थित ग्रहों के बलाबल का विचार कर लेना भी आवश्यक है। सप्तमभाव, सप्तमेश या सप्तमभाव स्थित राशि और ग्रहों का सम्बन्ध भी अपेक्षित है। यदि प्रश्नकाल में बृहस्पति, मंगल और रवि बलवान् हों तो पुरुषाभरण और चन्द्रमा, बुध, शनि, राहु और शुक्र बलवान हों तो स्त्रीआभरण की चिन्ता कहनी चाहिए। प्रथम चक्रार्ध में बलवान ग्रह हों और द्वितीय चक्रार्द्ध में बलवान ग्रह और प्रथम चक्रार्द्ध में हीनबली ग्रह हों तो दक्षिण अंग के आभरण की चिन्ता; पंचम, अष्टम और नवम के शुद्ध होने पर देवाभरण और लग्न, चतुर्थ, पष्ठ और दशम के शुद्ध होनेपर पक्षी आभरण की चिन्ता कहनी चाहिए। मिथुन लग्न में बुध स्थित हो, द्वितीय में शुक्र, चतुर्थ में मंगल, पंचम में शनि और बारहवें भाग में केतु स्थित हो तो हार, कण्ठा, हँसुली और खौर की चिन्ता; कन्या लग्न में बुध हो, वृश्चिक राशि में शुक्र, मकर में शनि, धनु में चन्द्रमा और व्ययभाव में राहु स्थित हो तो पाजेब, नूपुर, छल्ला, छड़े (कड़े), झाँझर आदि आभूषणों की चिन्ता; तुला लग्न में शुक्र हो, मिथुन राशि में बुध हो, वृश्चिक में केतु हो, मेष में रवि हो, वृष में गुरु हो और कुम्भ राशि में शनि हो तो कर्णफूल, इयररिंग, कुण्डल, बाली आदि कान के आभूषणों की चिन्ता; धनु लग्न में बुध हो, मिथुन में गुरु हो, मेष में सूर्य हो, कर्क राशि में चन्द्रमा हो, सिंह में मंगल हो, कन्या राशि में राहु हो और दसवें भाव में कोई ग्रह नहीं हो तो पहुँची, कंकण, दस्ती, चूड़ी एवं टड्डे आदि आभूषणों की चिन्ता, सिंह लग्न में एक साथ चन्द्रमा, सूर्य और मंगल बैठे हों तथा लग्न से पंचम भाव में शुक्र हो, शनि मित्र के घर में स्थित और बुध लग्न को देखता हो तो हीरे और मणियों के आभूषणों की चिन्ता एवं चतुर्थ, पंचम, सप्तम, अष्टम, दशम और द्वादश भाव में ग्रहों के नहीं रहने से सुवर्णडली की चिन्ता कहनी चाहिए। आभूषणों का विचार करते समय ग्रहों के बलाबल का भी विचार करना परमावश्यक है। हीन बलग्रह के होने पर आभूषण उत्तम धातु का नहीं होता और न उत्तमांग का ही होता है।
केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि : १११