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अधाम्य योनि के भेद अथाधाम्य' कथ्यते। अधाम्या' अष्टविधाः। मौक्तिकपाषाणहरितालमणिशिलाशर्करावालुकामरकतपद्मरागप्रवालादयः। तत्र नाम्ना विशेषः। इति धातुयोनिः।
___ अर्थ-अधाम्य धातु योनि के आठ भेद हैं-मोती, पत्थर, हरिताल, मणि, शिला, शर्करा (चीनी), बालू, मरकत (मणिविशेष), पद्मराग और मूंगा इत्यादि। इन प्रधान आठ अधाम्य धातु योनि के भेदों की नाम की विशेषता है। इस प्रकार धातु योनि का प्रकरण पूर्ण हुआ।
विवेचन-वास्तव में अधाम्य धातु के तीन भेद हैं-उत्तम, मध्यम और अधम। यदि प्रश्नकर्ता के प्रश्नाक्षरों में आद्य वर्ण क ग ङ च ज ञ ट ड ण त द न प ब म य ल श स इन अक्षरों में से कोई हो तो उत्तम अधाम्ययोनि-हीरा, माणिक, मरकत, पद्मराग और मूंगा की चिन्ता; ख घ छ झ ठ ढ थ ध फ भ र व ष ह इन अक्षरों में से कोई वर्ण हो तो मध्यम अधाम्ययोनि-हरिताल, शिला, पत्थर आदि की चिन्ता एवं उ ऊ अं अः इन स्वरों से संयुक्तव्यंजन प्रश्न में हो तो अधम अधाम्ययोनि-शर्करा, लवण, बालू आदि की चिन्ता कहनी चाहिए। यदि प्रश्न के आद्य वर्ण में अ इ ए ओ ये चार मात्राएँ हों तो उत्तम अधाम्य धातु की चिन्ता; आ ई ऐ औ ये चार मात्राएँ हों तो मध्यम अधाम्य धातु की चिन्ता और उ ऊ अं अः ये चार मात्राएँ हों तो अधम अधाम्य धातु योनि की चिन्ता कहनी चाहिए।
यदि लग्न सिंह राशि हो और उसमें सूर्य स्थित हो तो शिला की चिन्ता; कन्या राशि लग्न हो और उसमें बुध स्थित हो अथवा बुध की लग्न स्थान पर दृष्टि हो तो मृत्पात्र की चिन्ता; तुला या वृष राशि लग्न हो और उसमें शुक्र स्थित हो या शुक्र की लग्न स्थान पर दृष्टि हो तो मोती और स्फटिक मणि की चिन्ता; मेष या वृश्चिक राशि लग्न हो और लग्न स्थान में बली मंगल स्थित हो अथवा लग्न स्थान पर मंगल की दृष्टि हो तो मूंगा की चिन्ता; मकर या कुम्भ राशि लग्न में हो और लग्न स्थान में शनि स्थित हो या लग्न स्थान पर शनि की त्रिपाद दृष्टि हो तो लोहे की चिन्ता; धनु या मीन राशि लग्न में हो और लग्न स्थान में बृहस्पति स्थित हो अथवा लग्न स्थान पर बृहस्पति की दृष्टि हो तो मनःशिला की चिन्ता; लग्न स्थान में कुम्भ राशि हो और बलवान शनि लग्न भाव में स्थित हो तथा लग्न स्थान पर राहु और केतु की पूर्ण दृष्टि हो तो नीलम, वैडूर्य की चिन्ता; वृष लग्न में शुक्र स्थित हो, चन्द्रमा की लग्न स्थान पर पूर्ण दृष्टि हो तो मरकत मणि की चिन्ता; सूर्य द्वादश भावस्थ सिंह राशि में स्थित हो, लग्न पर मंगल की पूर्ण दृष्टि हो अथवा शनि लग्न को त्रिपाद दृष्टि से देखता हो तो सूर्यकान्त मणि की चिन्ता एवं कर्क लग्न में चन्द्रमा स्थित हो, बुध की लग्न स्थानपर पूर्ण दृष्टि हो या शुक्र चतुर्थ भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो चन्द्रकान्त मणि की चिन्ता कहनी चाहिए। अधाम्य धातुयोनि के निर्णय हो जाने पर ही उपर्युक्त ग्रहों के अनुसार फल कहना चाहिए। बिना अधाम्य धातु योनि के निर्णय किये
१. तुलना-के. प्र. र. पृ. ७१-७२ । ग. म. पृ. ६। ज्ञा. प्र. प. १७। के. हो. ह. पृ. १३ । २. अधाम्या अष्टविध...प्रागेवोक्तो-क. मू.। ३. नाम्ना विशेषतो ज्ञेयाः-क. मू.।
११२ : केवलज्ञानप्रश्नचूडामणि