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योगशास्त्र 2/3
जिसमें देवों के गुण न हो, उसमें देवत्व बुद्धि, गुरु के गुण. न हो, उसमें गुरुत्व बुद्धि और अधर्म में धर्मबुद्धि रखना मिथ्यात्व है । सम्यक्त्व से विपरीत होने के कारण यह 'मिथ्यात्व' कहलाता है ।
134. समता से मुक्ति
आ-संबरो अ सेयंबरो अ बुद्धो य अहव अन्नो वा । समभावभाविअप्पा, लहेइ मुक्खं न संदेहो ॥
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 276] सम्बोधसत्तरि - 2
व्यक्ति चाहे दिगम्बर हों या श्वेताम्बर हो, बौद्ध हो या अन्य बौद्धेतर क्यों न हो, जबतक उसमें समताभाव की प्राप्ति नहीं होती तबतक मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती । समता भाव प्राप्त होते ही अवश्य मोक्ष प्राप्त होता है। इसमें कोई सन्देह नहीं ।
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135. सूर्य छिपे नहीं, बादल छाये
सुट्रुवि मेहसमुदये, होड़ पहा चंदसूराणं ।
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श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 277]
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नंदीसूत्र 75
घने मेघावरणों के भीतर भी चन्द्र-सूर्य की प्रभा कुछ-न-कुछ
प्रकाशमान रहती ही है ।
136. मिथ्याचार से दूर
बाह्येन्द्रियाणि संयम्य, यः आस्ते मनसा स्मरन् । इन्द्रियार्थान् विमूढात्मा, मिथ्याचारः स उच्यते ॥
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 278] भगवद्गीता - 3/6
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड- 6 • 90