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________________ श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 248] आवश्यक नियुक्ति 840 को प्राप्त बिजली की चमक के समान चंचल दुर्लभ मनुष्यत्व करके भी जो व्यक्ति प्रमाद का सेवन करता है, वह कायर पुरुष है, न कि सत्पुरुष । 130. मातृ - गौरव उपाध्यायान् दशाचार्यः, आचार्याणां शतं पिता । सहस्त्रं तु पितुर्माता, गौरवेणातिरिच्यते ॥ श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 251] - मनुस्मृति 2145 * दस अध्यापकों से एक आचार्य महान् हैं, सौ आचार्यों से बढ़कर एक पिता और हजार पिताओं से एक माता महान् हैं । - 131. माया - मृषा त्याज्य अणुमायं पि मेहावी, मायामोसं विवज्जए । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 6 पृ. 254] दशवैकालिक - 5/2/49 आत्मविद् साधक अणुमात्र भी माया - मृषा ( दंभ और असत्य) 1 का सेवन न करे । 132. माया से सरलता माया विजएणं उज्जुभावं जणय । -- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 255] उत्तराध्ययन 29/69 माया को जीत लेने से ऋजुता ( सरलभाव ) प्राप्त होती है । 133. मिथ्यात्व - स्वरूप अदेवे देवबुद्धि र्या, गुरुधीरगुरौ च या । अधर्मे धर्मबुद्धिश्च मिथ्यात्वं तद्विपर्ययात् ॥ श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 274] अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड- 6 • 89
SR No.002321
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages312
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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