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- आवश्यक नियुक्ति 9/8 मूर्ख व्यक्ति किसी ठूठ से टकराने पर उस ढूंठ पर ही क्रोधित होता है, किन्तु अपनी दूषित प्रवृत्ति पर क्रोध नहीं करता । 124. कामान्ध-परिणाम
ब्रह्मालूनशिरोहरिदृशिसस्क् व्यालुप्त शिश्नोहरः । सूर्योऽप्युल्लिखितोऽनलोऽप्यखिलभुक्सोमः कलंकांकितः॥ स्वरनाथोऽपि विसंस्थूलः खलु वपुः संस्थैर्यस्थैः कृतः । सन्मार्ग स्खलनाद् भवन्ति विपदः प्रायः प्रभूणामपि ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 193]
- अन्ययोगव्यवच्छेद द्वात्रिंशिका सटीक कामान्ध होकर ब्रह्माजी ने अपना शिर कटवाया, विष्णु नेत्र-रोगी बने, महादेवजी का शिरच्छेदन हुआ, सूर्य छीला गया, अग्नि सर्वभक्षी बना, चन्द्रमा सकलंक बना तथा इन्द्र का शरीर सहस्र भाग युक्त बना । सच है सन्मार्ग से पतित हो जाने पर चाहे कितने ही समर्थ व्यक्ति क्यों न हो, वे प्राय: विपद्ग्रस्त हो ही जाते हैं। 125. तृष्णा का करिश्मा
तृष्णे ! देवि ! विडम्बनेयमखिलालोकस्य युष्मत्कृता। . - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 193]
- अन्ययोग व्यवच्छेद द्वात्रिंशिका सटीक हे तृष्णादेवी ! यह विडम्बना ही है कि तुमने इस सम्पूर्ण लोक को अपने अधीन कर लिया है। 126. श्रावक-स्वरूप
श्रद्धालुतां श्राति पदार्थचिन्तनाद्, धनानि पात्रेषु वपत्यनारतम् । किरत्यपुण्यानि सुसाधु सेवना, दद्यापि तं श्रावकमाहुरज्जसा ॥
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6. 87