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________________ साधक जैसे-जैसे द्वेष से दूर हटता जाता है और जैसे-जैसे उसे विषयों के प्रति वैराग्य होता जाता है, त्यों-त्यों वह मोक्ष के अधिकाधिक निकट पहुँचता जाता है। 111. पाप-जहर - न हु पावं हवइ हियं, विसं जहा जीवियऽत्थिस्स । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 149] - मरणसमाधिप्रकीर्णक 614 जैसे जीवितार्थी के लिए जहर हितकर नहीं होता, वैसे ही कल्याणार्थी के लिए पाप हितकर नहीं है। 112. ज्ञान-लगाम हुंति गुणकारगाई, सुयरज्जूहिं धणियं नियमियाइं । नियगाणि इंदियाइं, जइणो तुरगा इव सुंदता ॥ - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 149] - मरणसमाधिप्रकीर्णक 623 ज्ञान की लगाम से नियन्त्रित होने पर अपनी इन्द्रियाँ भी वैसे ही संयमित हो जाती हैं । जैसे-लगाम से नियन्त्रित होने पर तेज दौड़नेवाला घोड़ा । 113. अनर्थ-मूल अत्थोमूलं अणत्थाणं । - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 149] - मरणसमाधिप्रकीर्णक - 703 अर्थ अनर्थों का मूल है। 114. विचित्र मानव जाति माणुसजाई बहु विचित्ता। - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 6 पृ. 150] - मरणसमाधि प्रकीर्णक - 641 मानव-जाति बहुत विचित्र हैं। अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-6.84
SR No.002321
Book TitleAbhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
PublisherKhubchandbhai Tribhovandas Vora
Publication Year1998
Total Pages312
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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